मृत्यु सबसे बड़ा और अंतिम सत्य है. जो भी इस धरती पर आया है, उसको एक न एक दिन इसे छोड़कर जाना ही पड़ता है, लेकिन मृत्यु के बाद मरता सिर्फ शरीर है. आत्मा अमर है. वो मृत्यु लोक को त्यागने के बाद अपनी अगली यात्रा पर चली जाती है. अंतिम संस्कार करने के बाद एक बहुत अजीब सी परंपरा निभाई जाती है.
चिता जलने के बाद उसकी राख में 94 अंक लिखा जाता है. राख में 94 अंक लिखने के पीछे एक रहस्य है. आइए जानते हैं इस अंक को लिखने के पीछे का रहस्य.
चिता की राख पर 94 लिखने की परंपरा
अंतिम संस्कार यानी चिता के जलने के बाद राख ठंडी हो जाती है. फिर उस राख को गंगा में विसर्जित किया जाता है, लेकिन चिता की राख को गंगा में विसर्जित करने से पहले राख पर उंगली से 94 अंक लिखा जाता है. यह परंपरा पुजारी और मृतक के परिजन निभाते हैं.
गीता में मनुष्य के कर्मों का उल्लेख
जीवन का सबसे बड़ा और अंतिम सत्य मृत्यु है. मृत्यु के बाद आत्मा के कर्मों के आधार पर उसकी स्वर्ग और नरक की यात्रा शुरू होती है. गीता में मनुष्य के कर्मों का उल्लेख किया गया है. मनुष्य के जीवन में 100 कर्म होते हैं, जिनसे मृत्यु के बाद उसके परलोक पर असर पड़ता है. कहा जाता है कि 100 में 94 कर्मों पर मनुष्य का नियंत्रण होता है. इसमें नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कर्म हैं.
इसलिए लिखी जाती है ये संख्या
वहीं अन्य 6 कर्म जीवन, मृत्यु, यश, अपयश, लाभ और हानि भगवान के हाथ में है. मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के बाद मनुष्य के 94 कर्म जलकर राख हो जाते हैं. इसके बाद आत्मा के मोक्ष की यात्रा शुरू होती है. चिता की राख पर 94 अंक लिखना एक मुक्ति मंत्र माना जाता है. चिता की राख पर 94 लिखकर ये कहा जाता है कि मनुष्य अपने 94 कर्मों से मुक्त हो चुका है और अब उसे मोक्ष की चाहत है.
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