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जरूर जाने महा अष्टमी व्रत कथा पूजन सिद्धि के बारे मे 

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जरूर जाने महा अष्टमी व्रत कथा पूजन सिद्धि के बारे मे 

हिन्दी पंचांग कैलेंडर महा अष्टमी व्रत चैत्र नवरात्री मे अष्टमी का सर्वाधिक महत्व है| इसी दिन काली, महाकाली, भद्रकाली, दक्षिणकाली तथा बिजासन माता का पूजन किया जाता है| वास्तव मे इन्हे कुल की देवी माना जाता है| चै‍त्र नवरात्रि में अष्टमी का महत्व नवरात्रों मे आठवे दिन यानि अष्टमी का विशेष महत्व है तथा महागोरी की पूजा की छठा देखते ही बनती है| माँ गोरी को शिव की अर्धांगनी और गणेश जी की माता के रूप मे जाना जाता है| ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भक्त महागोरी की सच्चे दिल से उपासना करता है तो भगतों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते है| माता महागौरी के चमत्कारिक मंत्र का अपना महत्व है जिन्हे जपने से अनंत सुखों का फल मिलता है| माता की आराधना का मंत्र इस प्रकार है - (1) 'ॐ महागौर्य: नम:।' (2) 'ॐ नवनिधि गौरी महादैव्ये नम:।' इनका पूजन-अर्चन रक्तपुष्प से करें। खीर, हलुआ इत्यादि पकवान-मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। भवानी अष्टक इत्यादि से अर्चन-प्रार्थना करें तथा मंत्र जप करें। कन्या भोजन भी कराया जा सकता है। कन्याओं की उम्र 2 से 12 वर्ष तक हो। ध्यान रहे, हर मंत्र जप के पहले संकल्प लें। संस्कृत तथा शास्त्रोक्त न हो तो भी चलेगा। अपनी भाषा में नाम, गौत्र, मंत्र तथा मंत्र के देवता से मंत्रों की जप संख्या बोलकर जल छोड़ दें। जो लोग घटस्थापना करते हैं तथा देवी पाठ, जप कराते-करते हैं, अधिकतर इस दिन हवन करते हैं। वैसे इस दिन की अधिष्ठात्री देवी महागौरी हैं। वैभव, ऐश्वर्य प्रदान करने में इनकी समता कोई नहीं कर सकता है। कन्या पूजन आज के ही दिन कन्या पूजा का भी विधान है| कन्या पूजा नवमी पर भी की जाती है| परन्तु अष्टमी पर कन्या पूजन श्रेष्ट है| विधि अनुसार, ९ कन्याओं को भोजन कराया जाता है| वैसे दो कन्याओं से भी कार्य संपन हो जाता है| कन्याओं को देवी माता जी के तुल्य आदर दिया जाता है अथवा भोजन करवा कर कन्याओं को दक्षिणा भी दी जाती है| इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्नता से हमारे मनोरथ पूर्ण करती हैं| ऐसा भी माना जाता है कि अष्टमी और नवमी के बदलाव वाले समय मे माँ दुर्गा अपनी शक्तियों को प्रगट करती है जिस लिए एक विशेष प्रकार की पूजा की जाती है| जिसे चामुंडा की सांध्य पूजा के नाम से जाना जाता है| पूजन विधि महा अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद व्यक्ति को देवी भगवती की पूरे विधि और विधान से पूजा करनी चाहिए| ख़ास ध्यान रहे की माता की प्रतिमा अच्छे वस्त्रों से सुसज्जित रहनी चाहिए| देवी माँ की प्रतिमा को सारे परंपरागत हथियारों से सजा होना जरुरी है जैसे की उनके सर पर जो छत्र होता है उस पर एक चांदी यान सोने की छतरी भी होनी चाहिए| देवी वन्दना या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

   चैत्र नवरात्री मे अष्टमी का सर्वाधिक महत्व है| इसी दिन काली, महाकाली, भद्रकाली, दक्षिणकाली तथा बिजासन माता का पूजन किया जाता है| वास्तव मे इन्हे कुल की देवी माना जाता है|

चै‍त्र नवरात्रि में अष्टमी का महत्व

नवरात्रों मे आठवे दिन यानि अष्टमी का विशेष महत्व है तथा महागोरी की पूजा की छठा देखते ही बनती है| माँ गोरी को शिव की अर्धांगनी और गणेश जी की माता के रूप मे जाना जाता है| ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भक्त महागोरी की सच्चे दिल से उपासना करता है तो भगतों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते है| माता महागौरी के चमत्कारिक मंत्र का अपना महत्व है जिन्हे जपने से अनंत सुखों का फल मिलता है|

माता की आराधना का मंत्र इस प्रकार है –

(1) ‘ॐ महागौर्य: नम:।’

(2) ‘ॐ नवनिधि गौरी महादैव्ये नम:।’

इनका पूजन-अर्चन रक्तपुष्प से करें। खीर, हलुआ इत्यादि पकवान-मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। भवानी अष्टक इत्यादि से अर्चन-प्रार्थना करें तथा मंत्र जप करें। कन्या भोजन भी कराया जा सकता है। कन्याओं की उम्र 2 से 12 वर्ष तक हो।

ध्यान रहे, हर मंत्र जप के पहले संकल्प लें। संस्कृत तथा शास्त्रोक्त न हो तो भी चलेगा। अपनी भाषा में नाम, गौत्र, मंत्र तथा मंत्र के देवता से मंत्रों की जप संख्या बोलकर जल छोड़ दें। जो लोग घटस्थापना करते हैं तथा देवी पाठ, जप कराते-करते हैं, अधिकतर इस दिन हवन करते हैं। वैसे इस दिन की अधिष्ठात्री देवी महागौरी हैं। वैभव, ऐश्वर्य प्रदान करने में इनकी समता कोई नहीं कर सकता है।

कन्या पूजन

आज के ही दिन कन्या पूजा का भी विधान है| कन्या पूजा नवमी पर भी की जाती है| परन्तु अष्टमी पर कन्या पूजन श्रेष्ट है| विधि अनुसार, ९ कन्याओं को भोजन कराया जाता है| वैसे दो कन्याओं से भी कार्य संपन हो जाता है| कन्याओं को देवी माता जी के तुल्य आदर दिया जाता है अथवा भोजन करवा कर कन्याओं को दक्षिणा भी दी जाती है| इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्नता से हमारे मनोरथ पूर्ण करती हैं|

ऐसा भी माना जाता है कि अष्टमी और नवमी के बदलाव वाले समय मे माँ दुर्गा अपनी शक्तियों को प्रगट करती है जिस लिए एक विशेष प्रकार की पूजा की जाती है| जिसे चामुंडा की सांध्य पूजा के नाम से जाना जाता है|

पूजन विधि

महा अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद व्यक्ति को देवी भगवती की पूरे विधि और विधान से पूजा करनी चाहिए| ख़ास ध्यान रहे की माता की प्रतिमा अच्छे वस्त्रों से सुसज्जित रहनी चाहिए| देवी माँ की प्रतिमा को सारे परंपरागत हथियारों से सजा होना जरुरी है जैसे की उनके सर पर जो छत्र होता है उस पर एक चांदी यान सोने की छतरी भी होनी चाहिए|

देवी वन्दना

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता |

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

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