अजब, अनूठे, रहस्यमय एवं रोमांच से भरे गाँवों की कहानियां –
मुफ्त में मिल जाता है यहाँ सैकड़ो लीटर दूध- धोकड़ा गांव
पूरी दुनिया में वैसे तो डेनमार्क को ही एक ऐसे देश के रूप में जाना जाता है, जहाँ दूध की नदियां बहती है। वही कम ही लोग जानते हैं की भारत में भी एक ऐसा गांव है जहाँ ये पंक्ति सटीक बैठती है। वह गांव है गुजरात के सुदूर कच्छ के इलाके में बसा धोकड़ा गांव जोक़ि मुफ्त में दूध बांटने के लिए जाना जाता है। यहां के ग्रामीण यहाँ आने वाले लोगों व आस-पास के जरूरतमंदो को मुफ्त में ही दूध बांट देते है। जिसे आमतौर पर समाजसेवा की भावना से जोड़ा जाता रहा है जबकि सच में इसके पीछे गांव वालों के विश्वास से जुड़ी एक कहानी है। कहते हैं कि, तकरीबन 500 साल पहले यहां आए एक पीर-फकीर ने गांव की तरक्की एवं खुशहाली के लिए स्थानीय लोगों को दूध का व्यापार न कर उसे जरूरतमंदो को मुफ्त में बांटने की सलाह दी थी, जिसके बाद गांव में यह परम्परा बन गई।
हालाँकि कुछ बर्ष पूर्व जब किसी ग्रामीण ने इस बात को गलत साबित करने के लिए दूध का व्यापार आरंभ किया तो उसकी अचानक मृत्यु हो गई। जिससे गांव वालो के विश्वास को और बल मिला और मुफ्त दूध बांटने का काम आज भी यहां जारी है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन- भुज
क्योंकि शौक बड़ी चीज़ है- उप्पलां गांव
इंसान के पास अगर धन-दौलत की कमी ना हो तो वो अपने हर शौक को पूरी शिद्दत के साथ पूरा करने की कोशिश करता हैं। फिर चाहें उसका वो शौक कितना ही अजीबों-गरीब क्यों ना हो। ऐसे ही शौकियां और दौलतमंद लोगों का एक गांव है पंजाब के जालंधर शहर के नज़दीक बसा उप्पलां गांव। इस गांव के वासियों का अजीबों-गरीब शौक अपने घरो-कोठियों की छत पर खूबसूरत पानी की टंकी बनवाना है। जिस कारण आपकों यहां के हर कोठी की छत पर एक खुबसूरत आकृति वाली पानी की टंकी नजर आएगी वो भी लगभग 2 किलोमीटर दूर से।
यहां के किसी कोठी की छत पर आपको पानी जहाज़ बना दिखेगा तो कही एअर इंडिया का हवाई जहाज़, किसी कोठी की छत पर बैलगाड़ी नजर आयेगी तो कही पंख फैलाए उड़ने को तैयार बाज़। इस अजीबों-गरीब शौक के पीछे की कहानी के अनुसार गांव के ज्यादातर लोग मूलतः एन आर आई है जो सालों पहले पैसा कमाने विदेश गए थे। उन्हीं में से एक व्यक्ति ने अपनी पहली विदेश यात्रा की याद में जब अपनी कोठी की छत पर पानी जहाज की आकृति वाली पानी की टंकी बनवाई तो उनका ये रोचक आइडिया बाकी लोगों को भी भा गया। फिर देखते ही देखते गांव की हर कोठी की छत पर लोगों ने अपने पसंद की आकृति की पानी टंकी बनवा डाली। आज इस गांव की पहचान इसकी अजीबों-गरीब पानी की टंकियों से है। जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन- जालंधर
ऐसे अमीर किसान देखे है कहीं- सलारपुर खालसा
भले ही आज देश के ज्यादातर किसान बदहाली की जिंदगी जी रहे हो। मगर इस सबसे विपरीत उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल के अमरोहा जनपद के गांव सलारपुर खालसा के किसानों ने ना सिर्फ खेती से देश भर में अपने गांव का नाम रोशन किया है बल्कि खेती का गरीबी के पर्याय बन चुकी धारणा को भी गलत सिद्ध कर दिया है। वो भी किसी खास तरीके की फसल से नहीं बल्कि टमाटर जैसे रोजमर्रा की सब्जी की खेती से।
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इस सब के पीछे है एक किसान के प्रेरणा की कहानी जिसने 17-18 साल पहले अपने खेतों में टमाटर की खेती शुरू की थी। धीरे-धीरे इसका रकबा बढ़ता चला गया और गांव के बाकी किसान भी टमाटर की खेती की ओर आकर्षित होते चले गये। आज पूरे अमरोहा जनपद में 1200 हैक्टेयर में टमाटर की खेती की जाती है जिसका 1000 हैक्टेयर का हिस्सा अकेले इसी क्षेत्र का है। गौरतलब है की वर्तमान में जहाँ किसान खेती छोड़ शहर में रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं वही सलारपुर खालसा के किसान अपने साथ-साथ आसपास के 30 गांवों के लोगों को रोजगार प्रदान कर खेती की शक्ति की अनोखी मिसाल पेश करने में लगे हुए है।
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यहां के दिहाड़ी मजदूर भी रोज़ाना 300-400 रू कमा लेते है। अगर टमाटर की खेती के कुल कारोबार की करे तो खेती के इस कारोबार के आगे दिल्ली, मुम्बई में जमे अच्छे-अच्छे बिजनेस का टर्नओवर फ़ीका नजर आता है। 3500-4000 की आबादी वाले इस गांव के किसान मात्र 5 महीनें टमाटर की खेती कर 60 करोड़ से ज्यादा का कारोबार कर लेते है। किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए कई खाद, कीटनाशक कम्पनियों ने यहाँ के किसानों को राजस्थान एवं बैंगलुरू भेजकर प्रशिक्षण भी दिलवाया है। स्थानीय किसानों का दावा है कि देश का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां इस गांव का टमाटर नहीं पहुंचता।





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