क्या जबलपूर है भूकंप रेड जोन मै इंदौर में भूकंप तीव्रता 2.9:नर्मदा-सोन नदी घाटी के नीचे धरती में चल रही बड़ी उथल-पुथल, यहां ढाई साल में 37 बार लगे झटके
By manu Mishra 31July 2022
उत्तरी हिस्से की तुलना में दक्षिणी हिस्से में भूकंप का खतरा ज्यादा
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| प्रतीकात्मक फोटो |
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| प्रतीकात्मक फोटो |
बीते ढाई साल में नर्मदा और सोन नदी घाटी वाले जिलों में धरती के नीचे करीब 37 बाद भूकंप आ चुका है। हालांकि इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर सिर्फ 1.8 से 4.6 के बीच रही, लेकिन धरती के गर्भ में हो रही कंपन की इन घटनाओं ने केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की चिंता बढ़ा दी है। भूगर्भीय वैज्ञानिकों को मध्यम तीव्रता के इन भूकंपों से संकेत मिल रहे हैं कि टेक्टोनिक प्लेट्स के खिसकाव के कारण धरती के गर्भ में लगातार बड़े बदलाव चल रहे हैं।
नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी से प्राप्त डेटा के मुताबिक इन 37 में से 22 भूकंप का केंद्र 10 किमी गहराई में रहा है। इससे संकेत मिलता है कि भूगर्भ में जो बदलाव हो रहा है, वो इसी गहराई के करीब है। इसलिए मंत्रालय ने 6 महीने से नर्मदा घाटी की निगरानी बढ़ा दी है, ताकि इन झटकों से भविष्य पर पड़ने वाले असर को आंका जा सके। अमरकंटक से आलीराजपुर के बीच आने वाले जिन 15 जिलों को संवेदनशील माना जा रहा है, उनमें इंदौर और जबलपुर समेत डिंडौरी, मंडला, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, नरसिंहपुर, देवास, धार, खरगोन और बडवानी भी शामिल हैं।
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नजर इन पर
इंदौर, देवास, धार, खरगोन, बड़वानी, खंडवा, जबलपुर, मंडला, डिंडोरी, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, नरसिंहपुर, सिंगरौली और आलीराजपुर।
आखिरी बार
1997 में जबलपुर में आया था 5.8 तीव्रता का भूकंप, 41 जानें गई थीं
उत्तरी हिस्से की तुलना में दक्षिणी हिस्से में भूकंप का खतरा ज्यादा
भोपाल मौसम केंद्र के वैज्ञानिक वेदप्रकाश सिंह चंदेल के मुताबिक नर्मदा के उत्तरी हिस्से की तुलना में दक्षिणी हिस्से में भूकंप का खतरा ज्यादा है, क्योंकि इस हिस्से में इंडियन प्लेट है, जो नीचे की ओर जा रही है, जबकि उत्तरी हिस्से में प्रीकैम्ब्रियन प्लेट है, जो ऊपर उठ रही है। जिस तरह से छोटे-छोटे भूकंप आ रहे हैं, उससे संकेत मिल रहे हैं कि टेक्टोनिक प्लेट के मूवमेंट के कारण धरती के नीचे पुरानी चट्टानों के टूटने और नई चट्टानों की बनने की प्रक्रिया पहले से तेज हुई है। इसका असर उन इलाकों पर ज्यादा होने का अनुमान है जहां कैल्शियम कार्बोनेट यानी चूने की चट्टानें अधिक हैं, क्योंकि यह कमजोर और भुरभुरी होती है। जबकि ग्रेनाइट चट्टानों वाले इलाके इससे कम प्रभावित रहेंगे।
सरकारी रिकॉर्ड… पिछले 200 साल में मप्र ने झेले 5.8 से 6.5 तीव्रता तक के 4 बड़े झटके
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पास उपलब्ध रिकार्ड के मुताबिक मप्र में बीते 200 साल में चार बड़े और विनाशकारी भूकंप आए हैं। सबसे पहला मई 1846 में दमोह जिले में आया था, जिसकी तीव्रता 6.5 थी। दूसरा सोन नदी घाटी में 2 जून 1927 को आया था, इसकी भी तीव्रता 6.5 थी। इसके बाद 14 मार्च 1938 को 6.3 तीव्रता का भूकंप सतपुड़ा (पचमढ़ी) में आया था। इसके बाद 22 मार्च 1997 को 5.8 तीव्रता का भूकंप जबलपुर में आया था।
जबलपुर भूकंपीय क्षेत्र-3 में, इसलिए यहां ज्यादा खतरा
प्रदेश में आखिरी बार विनाशकारी भूकंप 25 साल पहले आया था। 22 मई 1997 को तड़के 4 बजे जबलपुर में आए भूकंप में 41 लोगों की मौत हुई थी। तब रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.8 मापी गई थी। प्रदेश में भूकंपीय क्षेत्र-3 में बसा बड़ी आबादी वाला एकमात्र महानगर जबलपुर ही है।
मंत्रालय ये डाटा जुटा रहा
इन 14 जिलों में सड़क, सुरंग या नहर जैसे विकास कार्यों के लिए कहां-कहां, कितनी तीव्रता के विस्फोट किए गए। कितने नए बोरवेल खनन किए गए हैं। इनकी औसत और अधिकतम गहराई क्या है।







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