किसी का स्वागत करना हो तो श्रीफल से अच्छी भेंट क्या हो सकती है! आखिर हिंदू सभ्यता में तो इससे अच्छा पुरस्कार भी कोई दूसरा नहीं माना गया है. क्या कभी कोई पूजा याद है जो नारियल के कलश के बिना ही हो गई हो? और फिर कथा समाप्त होने पर बंटने वाला नारियल का प्रसाद भला कोई कैसे भूल सकता है!

पर क्या कभी सोचा है कि धर्म और विज्ञान में जिस नारियल का महत्व इतना ज्यादा है आखिर वह धरती पर आया कैसे? साधरण सा जवाब होता है, जैसे पृथ्वी पर बाकी फल आए. किन्तु यह कह देना काफी नहीं होता.
दरअसल नारियल बाकी सबसे अलग है, इसलिए इसके धरती पर अवतरण की कहानी भी अलग है. विज्ञान चाहे जो कहे पर हिंदू पौराणिक कथाओं में नालियल के धरती पर आने की दो अद्भुत कहानियां हैं. जिन्हें जानकर आप कभी नारियल का अनादर नहीं कर पाएंगे! अगर नहीं मानते तो सुनिए—
भगवान विष्णु अपने साथ लाए थे
शास्त्रों के अनुसार जब भगवान विष्णु ने धरती पर अवतरण लिया तब वे अपने साथ तीन चीजें लाए थे. पहला देवी लक्ष्मी, कामधेनु और नारियल का वृक्ष. इसलिए इसे श्रीफल भी कहा जाता है. श्रीफल न केवल भगवान विष्णु बल्कि भगवान शिव और ब्रम्हा का भी प्रिय है. यही कारण कि यह नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहा गया है. यानि इस वृक्ष में तीनों देवताओं का वास होता है. यदि आपने गौर किया हो तो नारियल के भीतर तीन बीज रूपी संकेत भी इसी ओर इंगित करते हैं. यही कारण है कि नारियल तोडने के बाद इन बीजों को खाया नहीं जाता बल्कि भगवान की मूर्ति पर चढा दिया जाता है.
अथवा हवन में स्वाह: कर दिया जाता है.
श्रीफल से जुडा एक और रहस्य है. जिसके अनुसार नारियल बलि का पर्याय है. दरअसल पौराणिक काल में देवताओं की पूजा के बाद बलि देने का प्रावधान था. परंतु जीव हत्या पाप की श्रेणी में आता था. इसलिए ब्रम्हण इससे दूर रहते थे. चूंकि देव पूजा बलि के बिना अधूरी थी इसलिए भगवान विष्णु ने नारियल को पूजा के अंत में तोडना अनिवार्य किया. ताकि किसी मानव को जीव हत्या का पाप न लगे और पूजा का विधान भी न टूटे.
सत्यव्रत को नहीं मिला स्वर्ग में प्रवेश
कहा जाता है कि जब बात धर्म की हो तो तर्क नहीं किया जाता. पौराणिक कथाओं में ऐसे बहुत से उदाहरण मौजूद हैं जहां एक ही सार के पीछे तो अलग-अलग तथ्य हैं. नारियल के जन्म के पीछे भी ऐसी ही एक और कहानी है. शास्त्रों के अनुसार राजा पृथु के पुत्र सत्यव्रत परम प्रतापी थे. राजा रामचंद्र के वंशज होने का अर्थ ही यह है कि वे ईश्वर में असीम विश्वास रखते थे. सत्यव्रत ने अपने जीवनकाल के अंतिम दिनों में सारा राजपाठ अपने बेटे हरिश्चद्रं को सौंप दिया. अपने अपनी जीवन के अंतिम क्षणों में स्वर्ग लोक जाना चाहते थे. परन्तु उन्हें स्वर्ग तक जाने का मार्ग नहीं पता था. राजा सत्यव्रत ने अपनी समस्या लेकर ऋषि विश्वामित्र के आश्रम पहुंचे पर वे वहां से दूर वन में तपस्या के लिए गए थे. इस दौरान राजा उनका इंतजार करने के लिए आश्रम में ही ठहर गए. यहां रहते हुए सत्यव्रत ने पशुओं की सेवा की. भूखों को भोजन करवा. जब तक मुनि वापस लौटे तब तक आसपास के लोग राजा सत्यव्रत की उदारता के कायल हो चुके थे. ऋषि विश्वामित्र को जैसे ही यह पता चला वे राजा के पास पहुंचे. उन्होंने कहा कि हम आपके कामों से बहुत खुश हैं. मानव और पशुसेवा से बडा कोई और धर्म नहीं है. एक राजा होने के बावजूद आप ने आम लोगों के बीच रहकर उनकी सेवा की है. इसके बदले में मैं आपको एक वरदान देना चाहता हूं. राजा सत्यव्रत के लिए तो यह किसी उपकार से कम नहीं था, उन्होंने देर न करते हुए मुनि से कहा कि मैं धरती लोक पर अपने सभी धर्म पूरे कर चुका हूं. कृपया आप मुझे स्वर्ग जाने का मार्ग बताएं अथवा मुझे स्वर्ग तक पहुंचने में सहायता करें.
मुनि राजा के कर्मों से भली भांति परिचित थे. इसलिए उन्होंने देर न करते हुए सत्यव्रत के लिए धरती से स्वर्ग तक जाने वाली सीढ़ियों का रास्ता खोल दिया. सत्यव्रत ने विश्वामित्र से आर्शीवाद लिया और सीढ़ियों पर चढना शुरू किया जैसे-जैसे राजा एक एक सीढ़ी चढ रहे थे, देवलोक में देवताओं की चिंता बढ़ने लगी. देवराज इंद्र इस बात को लेकर चिंतित थे कि यदि धरती लोक का हर व्यक्ति स्वर्ग तक पहुंचने का रास्ता जान गया तो क्या होगा? उन्होंने विश्वामित्र से अपना वरदान वापस लेने का आग्रह किया लेकिन मुनि अपने वचन से बंधे हुए थे. अत: इंद्र ने ही स्वर्ग की सीढ़ियों से सत्यव्रत को धक्का दे दिया और स्वर्ग के दरवाजेे से सत्यव्रत सीधे धरती पर आ गिरे.
स्वर्ग का फल कहलाता है नारियल
धरती पर गिरते ही सत्यव्रत एक बार फिर ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे. उन्होंने बताया कि इंद्र नहीं चाहते हैं कि मैं आम मनुष्य होते हुए स्वर्ग में दाखिल हो सकूं. इसलिए उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. राजा ने कहा कि आपने मुझे स्वर्ग जाने का वचन दिया है, तो भला इसका पालन कैसे होगा?
मुनि जानते थे कि जब तक देवलोक में इंद्र है तब तक सत्यव्रत वहां प्रवेश नहीं पा सकते. उन्होंने देवताओं को समझाने का प्रयास किया पर कोई बात नहीं बनी. इसके बाद ऋषि विश्वामित्र ने बीच का मार्ग खोजा. उन्होंने सत्यव्रत और देवराज इंद्र को बैठाकर सुलह करवाई और कहा कि मैं एक दूसरा स्वर्ग लोक तैयार कर देता हूं जो धरती और असली स्वर्ग लोक के बीच में स्थित होगा. विश्वामिश्र ने स्वर्ग निर्माण के लिए स्थान का चुनाव तो कर लिया पर समस्या यह थी कि दूसरा स्वर्ग लोक धरती से दूर है परंतु इसके नीचे नींव की जरूरत है. स्वर्ग की नींव रखने के लिए विश्वामिश्र ने एक मजबूत खंबे का निर्माण किया. इसी नींव पर दूसरे स्वर्ग लोक का निर्माण हुआ, जिसका नाम त्रिशंकु कहलाया. हालांकि यह स्वर्ग से विपरीत दिशा में था पर यहां के राजा सत्यव्रत बनें. जिस खंबे पर यह स्वर्ग लोक बना था वह अनंतकाल बाद नारियल का पेड़ बना. चूंकि हर मनुष्य स्वर्ग तक नहीं पहुंच सकता था इसलिए नारियल के फल को जीवंत किया गया. इस प्रकार जो लोग स्वर्ग तक नहीं पहुंच पाए हैं उन्हें स्वर्ग का फल नारियल के रूप में मिला. यदि आज भी खुले आसमान में दक्षिण दिशा की ओर दूरदर्शी की सहायता से देखा जाए तो तीन शंकु दिखाई देते हैं. यही वह दूसरा स्वर्ग कहलाता है. खास बात है कि यह तीनो शंकु विपरीत है. सीधा देखने पर यह क्रिस्चियन क्रॉस जैसे दिखाई देते हैं. खगोल विद्या में इस समूह के मुख्य क्रॉस को साउदर्न क्रक्स कहा जाता है.
इसलिए महिलाएं नहीं तोड़ती नारियल
यह बात पहले ही स्पष्ट हो चुकी है कि नारियल का वृक्ष ही कल्पवृक्ष कहलाता है. अब सवाल उठता है कि जब धार्मिक दृष्टि से नारियल इतना महत्वपूर्ण है तो भला महिलाओं को इसे तोडने का अधिकार क्यों नहीं? इस संदर्भ में कहा गया है कि महिलाएं संतान को जन्म देती हैं. उनमें एक नए जीवन के बीज को अंकुरित करने की क्षमता होती है. जबकि नारियल के फल में भी बीज होता है. ऐसे में भला एक महिला किसी बीज की हत्या कैसे कर सकती है?
यही कारण है कि हिंदू धर्म में महिलाओं का नारियल तोडना निषेध माना गया है. इसके अलावा नारियल के वैज्ञानिक गुणों से तो सभी परिचित है. इसमें विटामिन, पोटेशियम, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं. नारियल में वसा और कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है. जिससे मोटापा नहीं पनपता. तो यदि अब तक आप नारियल के गुणों से अंजान थे तो अब इसके महत्व को जरूर जान गए होंगे!