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सिंधिया और संघ में खटपट : शिवराज मंत्रिमंडल के खिंचने की वज़ह

भोपाल। ज्योतिरादित्य के अरमान पर पानी फिरता दिख रहा है, उनके समर्थकों को शर्तिया लाभ नहीं मिल पा रहा है।संघ के साथ उनकी खटपट से शिव राज कुनबे के  विस्तार में भी कांटे निकल रहे है।अपमान का विष पी पीकर थकने  बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जिस सम्मान और पद की चाहत में कांग्रेस की सरकार गिराई और भाजपा में शामिल हो गए अब वही सिंधिया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कदाचित खटकने लगे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कहते हैं सिंधिया मप्र सरकार में 10 बर्खास्त चहेते विधायकों को कैबिनेट मंत्री बनवाने पर अड़े हुए हैं। खबरें मिली हैं कि सिंधिया की इस मांग पर भाजपा की मातृसंस्था आरएसएस को कड़ी आपत्ति है। एक संघ पदाधिकारी की माने तो संघ सिंधिया खेमे के 10 बागी बर्खास्त विधायकों को मंत्री बनाये जाने का पक्षधर नहीं है। और उसने अपनी इस मंशा से प्रधानमंत्री को अवगत भी करा दिया है। संघ के पदाधिकारी ने यहां तक बताया कि ज्योतिरादित्य को राज्यसभा भेजे जाने के लिए भी संघ सहमत नहीं हो रहा था लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उसने ना नुकुर करते हामी भर दी परंतु अब सिंधिया की मांग को संघ अनैतिक दवाब मान रहा है। संघ पदाधिकारी की बात अगर सच है तो इसका मतलब तो यह हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की स्थिति आसमान से गिरे और खजूर में अटके वाली हो सकती है। शिवराज मंत्रिमंडल के कुल पांच सदस्यों में फिलहाल दो मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट हैं। सिंधिया समर्थक वे निवर्तमान विधायक हैं जिन्हें कांग्रेस सरकार गिराने के दोष में विधानसभा सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया था। ऐसे कुल 22 विधायक हैं,जिन्होंने सिंधिया के साथ जाने का निर्णय लिया था। अब इन 22 सीटों पर उपचुनाव होने हैं साथ ही विधायकों के निधन के कारण पूर्व से रिक्त दो अन्य सीटें पर भी उपचुनाव होना है। कोरोना संक्रमण के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विशेष आग्रह पर संघ एवं भाजपा हाईकमान ने पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल बनाने की स्वीकृति दे दी। और मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना आजकल में कही जा रही है। 232 विधायकों की संख्यानुसार मप्र मंत्रिमंडल में अधिकतम 34 सदस्य संख्या हो सकती है। जिसके मुताबिक अभी 29 पद रिक्त हैं। सिंधिया के समर्थक इन 22 बर्खास्त विधायको को उपचुनाव लड़ना है। जिसमे वर्तमान में दो मंत्री भी शामिल है। खबर तो यहां तक मिली है कि यशोधरा राजे सिंधिया और गोपाल भार्गव को पहले गठन में मंत्री न बनाए जाने पर भी  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुश नहीं है। कोरोना संकट में मंत्रिमंडल विस्तार का दबाव सिंधिया की ओर से है क्योंकि पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार में सिंधिया कोटे के 6 कैबिनेट मंत्री थे। सिंधिया की मंशा शिवराज मंत्रिमंडल में 10 लोगों को कैबिनेट मंत्री पद पर देखने की है। हालांकि आरएसएस के अड़ंगे की खबरें जिस प्रकार मिल रहीं हैं उसे देखकर तो नहीं लग रहा है कि ज्योतिरादित्य की मंशा पूरी हो पाएगी। सिंधिया चाहेंगे कि मंत्रिमंडल विस्तार में देर न हो ताकि उनके लोग मंत्री बनकर अपने विधानसभा क्षेत्रों में कुछ कार्य कर लें। सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सिंधिया को राज्यसभा भेजने तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान देने पहले से राजी हैं लेकिन संघ के तेवरों को देखते हुए 10 मंत्रिपद दे पाना उनके लिए जरा मुश्किल हो गया है। 
सिंधिया से संघ अलग क्यों ?
जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण मप्र में भाजपा की महज 15 महीनों में सत्ता पुनर्स्थापित हो पाई और शिवराज चौथी बार मुख्यमंत्री बन पाए, संघ उन्हें लेकर ज्यादा खुश नहीं बताया जा रहा है।  इसका प्रमुख कारण संघ के कार्यकर्ताओं से मिल रहे फीडबैक को बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने से भाजपा के भीतर अंतर्कलह बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। इससे भाजपा कार्यकर्ताओं को अपनी ही सरकार में उतना महत्व नहीं मिल पायेगा जितना सिंधिया समर्थकों को। इससे आपसी टकराव भी बढ़ेगा। भाजपा को इससे नुकसान होगा। सिंधिया के भाजपा में आने की शर्तों में एक यह भी है कि जिन 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी उन्हें ही भाजपा से उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया जाएगा। यानी भाजपा के उम्मीदवार रहे भाजपा नेताओं को कांग्रेस के आयातित उम्मीदवारों को जिताने के लिए काम करना पड़ेगा। संघ को मिले फीडबैक में यह बात भी आई है कि जिस महल के खिलाफ दशकों से भाजपा लड़ती आई है, उनके कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य मिट जाएगा। इतना ही नहीं उन्हें  महल के आगे नाक रगड़नी पड़ सकती है। ग्वालियर चम्बल क्षेत्र के भाजपा नेता, संघ के स्वयंसेवक दुविधा में हैं। सिंधिया की शैली जगजाहिर है इससे चिंता बढ़ गई है। 
इन्हें मंत्री पद की आस- 
राज्यवर्धन दत्तीगांव, इंदल कंसाना, महेंद्र सिसोदिया, इमरती देवी, प्रदुम्न सिंह तोमर,प्रभुराम चौधरी, बिसाहूलाल सिंह,हरदीप डंग आदि।
भाजपा से भाजपा द्वंद …! 
2018 के चुनाव में कांग्रेस के 22 बागी विधायक जिन सीटों से जीते थे, उनमें से 20 पर भाजपा दूसरे नंबर पर थी। 11 सीटों पर जीत-हार का अंतर 10% से भी कम आया था।22 बागी में से 15 तो अकेले सिंधिया के गढ़ ग्वालियर-चंबल से हैं। इन्हें दोबारा जीतना चुनौती होगी।  इनमें मुरैना से 4, ग्वालियर से 3, अशोकनगर, शिवपुरी और भिंड से 2-2 हैं। इनके अलावा दतिया, देवास, रायसेन, इंदौर, गुना, सागर, मंदसौर, अनूपपुर और धार जिले से 1-1 हैं।
डॉ. नवीन जोशी
Manu Mishra 1 shramveerbharat news
Author: Manu Mishra 1 shramveerbharat news

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