नई दिल्ली, । सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तीन तलाक के मुद्दे को बेहद गंभीर बताते हुए कहा कि इसपर सुनवाई होनी चाहिए। इस मुद्दे को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई पांच जजों की बड़ी बेंच मई के महीने में करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबंधित पक्षों को 30 मार्च तक अपनी बातें लिखित में अटॉर्नी जनरल के पास जमा करानी होगी।
केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर ये कहा है कि ट्रिपल तलाक, मर्दों को 4 शादी की इजाजत और निकाह हलाला जैसे प्रावधान संविधान के मुताबिक नहीं है।
इससे पहले 10 जनवरी और 7 अक्टूबर को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने ट्रिपल तलाक मामले का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर हलफनामा दाखिल करते हुए कहा है कि ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव है जिसे रोकना जरूरी है। उनकी गरिमा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है। पर्सनल लॉ के आधार पर किसी को संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।
इससे पहले ट्रिपल तलाक के मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। हलफनामे में बोर्ड ने कहा था कि पर्सनल लॉ को सामाजिक सुधार के नाम पर दोबारा से नहीं लिखा जा सकता और तलाक की वैधता सुप्रीम कोर्ट तय नहीं कर सकता है। बोर्ड ने हलफनामा में कहा था कि तलाक, शादी और देखरेख हर धर्म में अलग-अलग हैं। एक धर्म के अधिकार को लेकर कोर्ट फैसला नहीं दे सकता। कुरान के मुताबिक तलाक अवांछनीय है लेकिन जरूरत पड़ने पर दिया जा सकता है।
इस्लाम में यह पॉलिसी है कि अगर दंपती के बीच संबंध खराब हो चुके हैं तो शादी को खत्म कर दिया जाए। तीन तलाक की इजाजत है क्योंकि पति सही निर्णय ले सकता है, वह जल्दबाजी में फैसला नहीं लेते। तीन तलाक तभी इस्तेमाल किया जाता है जब वैलिड ग्राउंड हो। गौरतलब है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ कोई कानून नहीं है जिसे चुनौती दी जा सके, बल्कि यह कुरान से लिया गया है। यह इस्लाम धर्म से संबंधित सांस्कृतिक मुद्दा है।






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