जानिए शनि की साढ़ेसाती के तीनों चरणों के प्रभाव शनि की साढ़ेसाती के बचाव के चमत्कारिक उपाय
जानिए शनि की साढ़ेसाती के तीनों चरणों के प्रभाव शनि की साढ़ेसाती के बचाव के चमत्कारिक उपाय
By pandit manu Mishra 13, June2022,shramveerbharat news
प्रथम चरण का फल :
साढेसाती का प्रथम चरण-कहते हैं कि इस चरण में शनि मस्तक पर रहता है। इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। आय की तुलना में व्यय अधिक होते है। सोचे गए कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते है। आर्थिक तंगी के कारण अनेक योजनाएं आरम्भ नहीं हो पाती है। अचानक धनहानि होती है, अनिद्रा रोग हो सकता है एवं स्वास्थ्य खराब रहता है। भ्रमण के कार्यक्रम बनकर बिगडते रह्ते है। यह अवधि बुजुर्गों हेतु विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है। मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि हो जाती है। पारिवारिक जीवन में बहुत सी कठिनाईयां आती है और परिश्रम के अनुसार लाभ नहीं मिलता है.
साढे़ साती का दूसरा चरण :
व्यक्ति को शनि साढेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है। उसके संबंधी भी उसको कष्ट देते है, उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड सकता है और घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है। रोगों में वृ्द्धि होती है, संपति से संम्बन्धित मामले परेशान कर सकते है। मित्रों एवं स्वजनों का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है. कार्यों के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा घर कर जाती है। कार्यो को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पडते है. आर्थिक परेशानियां तो मुहं खोले खड़ी रहती हैं।
साढे साती का तीसरा चरण :
शनि साढेसाती के तीसरे चरण में भौतिक सुखों में कमी होती है, उसके अधिकारों में कमी होती है और आय की तुलना में व्यय अधिक होता है, स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है, परिवार में शुभकार्य बिना बाधा के पूरे नहीं होते हैं। वाद-विवाद के योग बनते है और संतान से वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते है. यह अवधि कल्याण कारी नहीं रह्ती है. इस चरण में वाद-विवादों से बचना चाहिए
१. खाली पेट नाश्ते से पूर्व काली मिर्च चबाकर गुड़ या बताशे से खाएं.
२. भोजन करते समय नमक कम होने पर काला नमक तथा मिर्च कम होने पर काली मिर्च का प्रयोग करें.
३. भोजन के उपरांत लोंग खाये.
४. शनिवार व मंगलवार को क्रोध न करें.
५. भोजन करते समय मौन रहें.
६. प्रत्येक शनिवार को सोते समय शरीर व नाखूनों पर तेल मसलें.
७. मॉस, मछली, मद्य तथा नशीली चीजों का सेवन बिलकुल न करें.
८. घर की महिला जातक के साथ सहानुभूति व स्नहे बरते. क्योकि जिस घर में गृहलक्ष्मी रोती है उस घर से शनि की सुख-शांति व समृद्धि रूठ जाती है. महिला जातक के माध्यम से शनि प्रधान व्यक्ति का भाग्य उदय होता है.
९. गुड़ व चनें से बनी वस्तु भोग लगाकर अधिक से अधिक लोगों को बांटना चाहिए.
१०. उड़द की दाल के बड़े या उड़द की दाल, चावल की खिचड़ी बाटनी चाहिए. प्रत्येक शनिवार को लोहे की कटोरी में तेल भरकर अपना चेहरा देखकर डकोत को देना चाहिए. डकोत न मिले तो उसमे बत्ती लगाकर उसे शनि मंदिर में जला देना चाहिए.
११. प्रत्येक शनि अमावस्या को अपने वजन का दशांश सरसों के तेल का अभिषेक करना चाहिए.
१२. शनि मृत्युंजय स्त्रोत दशरथ कृत शनि स्त्रोत का ४० दिन तक नियमित पाठ करें.
१३. काले घोड़े की नाल अथवा नाव की कील से बना छल्ला अभिमंत्रित करके धारण करना शनि के कुप्रभाव को हटाता है.
१४. जिस जातक के परिवार, घर में रिश्तेदारी, पड़ोस में कन्या भ्रूण हत्या होती है. जातक प्रयास कर इसे रोकेगा तो शनि महाराज उससे अत्यंत प्रसन्न होते है.