
ग्रहण के दौरान खाना पीना क्यों मानते हैं जहर
आज लगने जा रहा सूर्यग्रहण इस साल का अंतिम सूर्यग्रहण है। आपने अक्सर सुना होगा की सूर्यग्रहण के दौरान कई कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। इसी तरह स्कंद पुराण में बताया गया है कि सूर्यग्रहण के दौरान खाना नहीं खाना चाहिए। ऐसे में आपके मन में जिज्ञासा उठती होगी की ऐसा क्यों होता है? सूर्यग्रहण के दौरान अगर भोजन कर लिया जाए तो उससे क्या होता है। आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण क्या है।
स्कंदपुराण के अनुसार क्यों नहीं करना चाहिए भोजन
स्कंदपुराण के अनुसार सूर्यग्रहण हो या फिर चंद्रग्रहण दोनों में ही भोजन नहीं करना चाहिए। जब भी ग्रहण लगने वाला हो उस समय खाद्य पदार्थों में कुश डाल दें। ताकि सारे जीवाणु कुश में ही एकत्रित हो जाएं। इस बात का ख्याल रखें की सूर्यग्रहण समाप्त होने के बाद इसे निकालकर फेंक दें। स्कंदपुराण के अनुसार, जो व्यक्ति सूर्यग्रहण के दौरान खाना खाता है उसके द्वारा किए गए सभी पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं।
ग्रहण के दौरान खाना पीना क्यों मानते हैं जहर
जैसे ही सूर्यग्रहण समाप्त हो जाए तुरंत ही स्नान कर लें। उसके बाद ही कुछ खाएं। दरअसल, ग्रहण के दौरान बहुत से किटाणु वातावरण में होते हैं औव वह व्यक्ति के शरीर से चिपक जाते हैं। ऐसे में कुछ भी खाने से पहले स्नान आदि करना बेहद जरूरी है।
सूर्यग्रहण से पहले बने खाने का क्या करे?
ग्रहण के पहले का बनाया हुआ अन्न ग्रहण के बाद त्याग देना चाहिए लेकिन ग्रहण से पूर्व रखा हुआ दही या उबाला हुआ दूध तथा दूध, छाछ, घी या तेल – इनमें से किसीमें सिद्ध किया हुआ अर्थात ठीक से पकाया हुआ अन्न (पूड़ी आदि) ग्रहण के बाद भी सेवनीय है परंतु ग्रहण के पूर्व इनमें कुशा डालना जरूरी है ।
ग्रहण का कुप्रभाव वस्तुओं पर न पड़े इसलिए मुख्यरूप से कुशा का उपयोग होता है । इससे पदार्थ अपवित्र होने से बचते हैं । कुशा नहीं है तो तिल डालें । तुलसी के पत्ते डालने से भी यह लाभ मिलता है किंतु दूध या दूध से बने व्यंजनों में तिल या तुलसी न डालें।
