
मार्गशीर्ष माह की शुरुआत हो चुकी है, इसे हिंदी में अगहन के नाम से भी जाना जाता है। यह माह भगवान कृष्ण को बेहद प्रिय है, गीता में कृष्ण ने कहा भी है कि माहों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसंत मैं ही हूं। वैदिक काल में इस माह का विशेष महत्व रहा है। इस माह भगवान कृष्ण की उपासना और पूजा-पाठ करने से हर तरह की सफलता मिलती है और सभी संकट दूर होते हैं। लेकिन इस माह में कुछ तिथियां ऐसी भी हैं, जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए अन्यथा धन के साथ सम्मान की भी हानि होती है।
हिंदू धर्म का नौंवा महीना मार्गशीर्ष होता है। इसे अग्रहायण नाम से जाना जाता है और इसी से अगहन नाम की उत्पत्ति हुई। इस माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को राम-सीता का विवाह हुआ था, जिसे विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। साथ ही शिव पुराण, रूद्र संहिता और पार्वती खंड के अनुसार, सप्तर्षियों के कहने पर इस महीने हिमनरेश हिमावन ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह शिव से करने के लिए निश्चित किया था।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मार्गशीर्ष मास मुझे हमेशा से सदैव प्रिय है। जो मनुष्य ब्रह्म मुहूर्त उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान व ध्यान करता है, उस पर संतुष्ट होकर मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूं। मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मास शून्य तिथियां होती हैं। मासशून्य तिथियों में मंगल कार्य करने से वंश तथा धन का नाश होता है।
मार्गशीर्ष में सप्तमी और अष्टमी तिथियों को मासशून्य तिथियां माना जाता है। इन तिथियों को कोई भी शुभ और मंगल कार्य करने से बचना चाहिए। मान्यता है कि इन तिथियों में ये कार्य करने से धन, वंश और सम्मान की हानि का सामना करना पड़ सकता है।
मार्गशीर्ष मास में हर रोज श्रीमद् भागवत कथा का पाठ करना चाहिए और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए। साथ ही इस महीने अगर किसी पवित्र नदी में स्नान करने का मौका मिले तो उसे ना गवाएं। इस महीने पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अगहन के इस महीने जीरे का सेवन करने से बचना चाहिए। साथ ही इस महीने जो व्यक्ति एक समय भोजन करने और गरीब व जरूरतमंद लोगों को भोजन करता है, उसे सभी प्रकार के रोग व पाप से मुक्त हो जाता है। इस मास में उपवास रखने वाला व्यक्ति दूसरे जन्म में रोग रहित बलवान होता है।





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