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जानें कौन थे प्रतिज्ञा के लिए प्रसिद्ध भीष्म? क्यों लेना पड़ा उन्हें ब्रह्मचारी रहने का प्रण

भीष्म पितामह महाभारत काल के प्रमुख पात्रों में एक हैं. ब्रह्मचारी रहने व राजा नहीं बनने की अपनी प्रतिज्ञा को उन्होंने आजीवन निभाया था. भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त के रूप में भी उनकी पहचान है. पर बहुत कम लोग हैं, जो उनकी प्रतिज्ञा व जीवन की जानकारी रखते हैं. ऐसे में आज हम आपको भीष्म पितामह का पूरा जीवन चरित्र सार रूप में बताने जा रहे हैं.

भीष्म पितामह की कथा
 अनुसार, भीष्म महाराज शांतनु के औरस पुत्र थे, जो गंगा देवी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. उनका नाम देवव्रत रखा गया था. निषाद की बेटी सत्यवती पर मोहित हुए शांतनु की पीड़ा देखकर देवव्रत ने मंत्रियों द्वारा पिता के दुख का कारण जान लिया. पिता की प्रसन्नता के लिए उन्होंने सत्यवती के पिता दासराज के पास जाकर पिता के लिए सत्यवती का हाथ मांगा.

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इस पर दासराज ने जब उनके रहते सत्यवती के पुत्रों के राजा नहीं बनने की बात उठाई तो उन्होंने आजीवन सिंहासन पर ना बैठने और अपने पुत्रों के राजा बनने की संभावना खत्म करने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा ले ली. जिसके बाद से ही देवव्रत भीष्म व उनकी प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा कहलाई. सत्यवती से विवाह होने के बाद पिता शांतनु ने प्रसन्न होकर बेटे भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया.

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