
मां वैष्णो देवी के दरबार से कौन परिचित नहीं है, त्रिकुट पर्वत पर विराजमान पहाड़ों वाली माता कही जाने वाली माता वैष्णो सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. जितनी सुंदर मैय्या की लीला है, उतना ही सुंदर है दरबार का स्वरूप, जो हर भक्त का मन मोह ही लेता है. क्या आपको ज्ञात है कि कैसे हुआ मां वैष्णो का प्राकट्य और कैसे विराजी मां इतने ऊपर पहाड़ों पर जाकर? अगर नहीं! तो पंडित रामचंद्र जोशी से जानते हैं इसकी पौराणिक कथा.
मां वैष्णो देवी का प्राकट्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हंसाली नामक एक गांव में श्रीधर नाम के एक भक्त हुए, जिनकी कोई संतान न थी. एक बार नवरात्रि का विधिपूर्वक व्रत आदि करके नवमी के दिन उन्होंने कुवांरी कन्याओं को पूजन हेतु बुलाया और भक्त पर कृपा करने मैय्या भी उन्हीं के बीच में एक कन्या का रूप लेकर आ बैठीं. उसके बाद सभी कन्याओं ने प्रस्थान किया परंतु देवी ने भक्त श्रीधर से कहा कि वे सभी गांववालों को विशाल भंडारे का निमंत्रण दे दें. श्रीधर ने ऐसा ही किया, भंडारे का आमंत्रण पाकर सभी लोग उस कन्या को देखने के लिए उत्सुक थे, जो इतना बड़ा भंडारा करने में सामर्थ्यवान थीं.





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