भोपाल। कोविड़-19 के बढ़ते प्रकोप नें ही देश की अर्थव्यवस्था चौपट करनें के साथ ही आम जनजीवन को नष्ट कर दिया है, देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है वहीं पूरे देश में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर मजदूरों का पैदल, साईकल से पलायन लगातार जारी है,सड़को से लेकर पटरियों तक मौतें भी हो रही है लेकिन पलायन का सिलसिला थमनें का नाम नहीं ले रहा, हलांकि सरकारें लगातार इस दिशा में काम कर रही हैं लेकिन कोई भी रुकनें को तैयार नहीं और एक साथ सभी की व्यस्था करना इस कोरोना काल में सरकार के लिये भी मुश्किल है। इसके साथ ही अब केन्द्र व राज्य सरकारों के खजानें इस महामारी और लॉकडाउन के चलते लड़़खडा गई हैं, इसलिये केन्द्र व राज्य सरकारें कोरोना से बचाव के दिशानिर्देशों का पालन करते हुये उद्योग को शुरु करनें के प्रयास में हैं लेकिन कई राज्य सरकारों में श्रम कानूनों मेें बदलाव का विरोध होनें लगा है, जिस विरोध को लेकर श्रमिकों का सबसे मजबूत संगठन बीएमएस नें मोर्चा खोल दिया है।
अब श्रम सन्नियमन श्रम कानून (Labour law या employment law) किसी राज्य द्वारा निर्मित उन कानूनों को कहते हैं जो श्रमिक (कार्मिकों), रोजगार प्रदाताओं, ट्रेड यूनियनें तथा सरकार के बीच सम्बन्धों को परिभाषित करतीं हैं।
उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं गुजरात की राज्य सरकारों ने लाॅकडाउन के दौरान अर्थव्यवस्था मजदूरों के कारण बिगड़ने का राग आलाप करते हुए समस्त श्रम कानूनों को तीन साल के लिए एक तरफा निर्णय लेकर बर्खास्त करने के लिए अध्यादेश जारी किया है। इन सरकारों ने अपने राज्य में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, कारखाना अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम, बोनस अधिनियम का भुगतान, अंर्तराज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, कार्यशील पत्रकार अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम जैसे कानूनों को निलंबित करने का निर्णय लिया है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा करने से उद्योग फल-फूल जाएगा और राज्य की अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी, अकल्पनीय है।
इन राज्यों का अनुसरण करते हुए और भी कई राज्य की सरकारें श्रम कानून की धज्जियां उड़ाने और श्रम संघों की अवहेलना करने का वातावरण बनाने का रोड मैप अपने-अपने राज्यों में मनमाने ढंग से तैयार कर, श्रमिकों के शोषण करने हेतु मार्ग विभिन्न पूँजीपतियों के लिए आसान हो, अध्यादेश लाकर केन्द्र सरकार के पास भेजने की तैयारी में हैं। केन्द्र की मंजूरी मिलने और अधिसूचना जारी होते ही सभी श्रम कानून निष्क्रिय होंगे। पूँजीपति, निजी मालिकाना के स्वामी या बर्बर सरकारें इनकी मजदूर विरोधी नीतियाँ लागू होना शुरु होगा। भारतीय मजदूर संघ के आह्वान पर आन्दोलन के लिए बिगुल फूँकने का समय आ गया है। ये सरकारें जो भ्रम पाल रखी हैं कि मजदूरों के कारण राज्यों के हालात बिगड़ रहे हैं यह बेबुनियाद एवं तर्कहीन है। किसी भी दृष्टिकोण से सरकारें इसे साबित नहीं कर सकती है।
वर्तमान में कोरोना महामारी के दौरान श्रम कानून और श्रमिकों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। जहां लाॅकडाउन और वैश्विक मंदी के कारण रोजगार के साधन घटे हैं वहीं इन राज्य सरकारों ने श्रम कानूूूूनो में बदलाव कर मजदूरों पर वज्रपात करने का षड्यंत्र शुरू कर दिया है, संवैधानिक श्रम कानूनों को तीन साल के लिए बर्खास्त करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है।
जिसमें श्रमिक से काम लेने की समयावधि 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करना, बिना आवश्यक सुविधाओं के काम पर लगाना, मालिक की इच्छानुसार कार्य से मुक्त कर देना जैसे कई अन्य श्रमिक विरोधी अधिकार प्राप्त होंगे। सरकारी तंत्र के इस रवैये से बड़ा सवाल यह भी है कि क्या गत 75 साल में राष्ट्र और उद्योग का विकास यही रहा है ? देश की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था यही रही है कि कोई भी राज्य सरकार इन चंद दिनों की महामारी में अपने राज्य की जनता को राहत नहीं दे सकती? उद्योगपति अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे सकते हैं? इनसे बेहतर हमारे वह श्रमिक बन्धु भगिनी हैं जो अपने वेतन से सरकार को राजस्व के साथ साथ प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री देखभाल निधि में भी सहयोग कर अपने सहकर्मियों के लिए लॉकडाउन के समय से ही लगातार अनवरत राहत कार्य भी सम्पन्न कर रहें हैं। भारतीय मजदूर संघ की माँग है कि राज्य सरकारें तत्काल ऐसे राष्ट्र विरोधी व मजदूर विरोधी अध्यादेश को वापस लें। ऐसे में उद्योगों का ध्वस्त होने का खतरा बढ़ेगा।
आज की वैश्विक मंदी के दौर में ऐसे अध्यादेश से रोजगार के अवसर बहुत कम हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में सरकार को कार्य अवधि 2 घंटे कम अर्थात् 8 से घटाकर 6 घंटे कर देने चाहिए ताकि 25% अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें व बेरोजगारी की समस्या कम की जा सके। राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मजदूरों को अतिरिक्त भत्ता से प्रोत्साहित कर उद्योगों में उत्पादन सुचारु रुप से विकसित करने की सोच बनाएं। भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री केपी सिंह नें कहा कि हम सब मजदूर परिवारों से हैं और हम आज जो भी हैं थोडा़-बहुत शिक्षा प्राप्त की है और अपने जीवन में थोड़ा सा सुधार किया है वह सब अपने इस मेहनत मजदूरी के बूते ही है। आज मजदूरों में 99% लोग गरीबी में पलने वाले समाज से ही है। और इस समाज के जीवन सुधार के लिए श्रम कानून श्रमिक हित में रहना अत्यावश्यक है।
कुछ राज्य सरकारों की विचारहीनता वर्तमान भारत को पुनः गहन अँधेरे में ले जा रही है। पहले अंग्रेजों का अत्याचार सहे हैं आज अपने द्वारा चुनी हुई सरकार (अपनों) के अत्याचार से मुकाबला है। सिंह नें कहा कि अपने जीवन को बेहतर बनाना है और अपनी आने वाली पीढ़ी को बेहतर भविष्य देना है तो अपनी आवाज को बुलंद करना होगा।
वहीं भारतीय मजदूर संघ शनिवार 16 मई से लगातार इस दिशा में आंदोलन की राह पर कार्य कर रहा है। 16 मई से 18 मई 2020 तक बीएमएस द्वारा पत्राचार-प्रचार प्रसार किया जायेगा, 20 मई को विरोध दिवस पालन करते हुए काला मास्क पहनकर शक्तिशाली प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपना।
तथा 30, 31 मई 2020 को प्रदेश एवं उद्योग आदि स्तर पर श्रमिक सम्मेलन (Convention) करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही बीएमएस महामंत्री केपी सिंह नें कहा कि सतर्कता रखनी होगी जिन मजदूरों/कर्मचारियों के बीच हम आन्दोलन करेंगे वहाँ राष्ट्र विरोधी ताकतें (असामाजिक तत्व, वामपंथी ट्रेड यूनियन, राजनीतिक दल, और CAA, NRC के विरोध में खड़े होने वाले लोग) भी आन्दोलन करने वाले हैं। उनका और हमारा ध्येय, उद्देश्य अलग अलग होंगे। टकराव से बचते हुए अपना आन्दोलन भारतीय मजदूर संघ की रीति-नीति के आधार पर करना है, सिंह नें कहा कि जब-जब मजदूरों / कर्मचारियों पर कुठाराघात हुआ है भारतीय मजदूर संघ सदैव उनके साथ रहा है।
उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं गुजरात की राज्य सरकारों ने लाॅकडाउन के दौरान अर्थव्यवस्था मजदूरों के कारण बिगड़ने का राग आलाप करते हुए समस्त श्रम कानूनों को तीन साल के लिए एक तरफा निर्णय लेकर बर्खास्त करने के लिए अध्यादेश जारी किया है। इन सरकारों ने अपने राज्य में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, कारखाना अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम, बोनस अधिनियम का भुगतान, अंर्तराज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, कार्यशील पत्रकार अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम जैसे कानूनों को निलंबित करने का निर्णय लिया है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा करने से उद्योग फल-फूल जाएगा और राज्य की अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी, अकल्पनीय है।
इन राज्यों का अनुसरण करते हुए और भी कई राज्य की सरकारें श्रम कानून की धज्जियां उड़ाने और श्रम संघों की अवहेलना करने का वातावरण बनाने का रोड मैप अपने-अपने राज्यों में मनमाने ढंग से तैयार कर, श्रमिकों के शोषण करने हेतु मार्ग विभिन्न पूँजीपतियों के लिए आसान हो, अध्यादेश लाकर केन्द्र सरकार के पास भेजने की तैयारी में हैं। केन्द्र की मंजूरी मिलने और अधिसूचना जारी होते ही सभी श्रम कानून निष्क्रिय होंगे। पूँजीपति, निजी मालिकाना के स्वामी या बर्बर सरकारें इनकी मजदूर विरोधी नीतियाँ लागू होना शुरु होगा। भारतीय मजदूर संघ के आह्वान पर आन्दोलन के लिए बिगुल फूँकने का समय आ गया है। ये सरकारें जो भ्रम पाल रखी हैं कि मजदूरों के कारण राज्यों के हालात बिगड़ रहे हैं यह बेबुनियाद एवं तर्कहीन है। किसी भी दृष्टिकोण से सरकारें इसे साबित नहीं कर सकती है।
वर्तमान में कोरोना महामारी के दौरान श्रम कानून और श्रमिकों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। जहां लाॅकडाउन और वैश्विक मंदी के कारण रोजगार के साधन घटे हैं वहीं इन राज्य सरकारों ने श्रम कानूूूूनो में बदलाव कर मजदूरों पर वज्रपात करने का षड्यंत्र शुरू कर दिया है, संवैधानिक श्रम कानूनों को तीन साल के लिए बर्खास्त करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है।
जिसमें श्रमिक से काम लेने की समयावधि 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करना, बिना आवश्यक सुविधाओं के काम पर लगाना, मालिक की इच्छानुसार कार्य से मुक्त कर देना जैसे कई अन्य श्रमिक विरोधी अधिकार प्राप्त होंगे। सरकारी तंत्र के इस रवैये से बड़ा सवाल यह भी है कि क्या गत 75 साल में राष्ट्र और उद्योग का विकास यही रहा है ? देश की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था यही रही है कि कोई भी राज्य सरकार इन चंद दिनों की महामारी में अपने राज्य की जनता को राहत नहीं दे सकती? उद्योगपति अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे सकते हैं? इनसे बेहतर हमारे वह श्रमिक बन्धु भगिनी हैं जो अपने वेतन से सरकार को राजस्व के साथ साथ प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री देखभाल निधि में भी सहयोग कर अपने सहकर्मियों के लिए लॉकडाउन के समय से ही लगातार अनवरत राहत कार्य भी सम्पन्न कर रहें हैं। भारतीय मजदूर संघ की माँग है कि राज्य सरकारें तत्काल ऐसे राष्ट्र विरोधी व मजदूर विरोधी अध्यादेश को वापस लें। ऐसे में उद्योगों का ध्वस्त होने का खतरा बढ़ेगा।
आज की वैश्विक मंदी के दौर में ऐसे अध्यादेश से रोजगार के अवसर बहुत कम हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में सरकार को कार्य अवधि 2 घंटे कम अर्थात् 8 से घटाकर 6 घंटे कर देने चाहिए ताकि 25% अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें व बेरोजगारी की समस्या कम की जा सके। राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मजदूरों को अतिरिक्त भत्ता से प्रोत्साहित कर उद्योगों में उत्पादन सुचारु रुप से विकसित करने की सोच बनाएं। भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री केपी सिंह नें कहा कि हम सब मजदूर परिवारों से हैं और हम आज जो भी हैं थोडा़-बहुत शिक्षा प्राप्त की है और अपने जीवन में थोड़ा सा सुधार किया है वह सब अपने इस मेहनत मजदूरी के बूते ही है। आज मजदूरों में 99% लोग गरीबी में पलने वाले समाज से ही है। और इस समाज के जीवन सुधार के लिए श्रम कानून श्रमिक हित में रहना अत्यावश्यक है।
कुछ राज्य सरकारों की विचारहीनता वर्तमान भारत को पुनः गहन अँधेरे में ले जा रही है। पहले अंग्रेजों का अत्याचार सहे हैं आज अपने द्वारा चुनी हुई सरकार (अपनों) के अत्याचार से मुकाबला है। सिंह नें कहा कि अपने जीवन को बेहतर बनाना है और अपनी आने वाली पीढ़ी को बेहतर भविष्य देना है तो अपनी आवाज को बुलंद करना होगा।
वहीं भारतीय मजदूर संघ शनिवार 16 मई से लगातार इस दिशा में आंदोलन की राह पर कार्य कर रहा है। 16 मई से 18 मई 2020 तक बीएमएस द्वारा पत्राचार-प्रचार प्रसार किया जायेगा, 20 मई को विरोध दिवस पालन करते हुए काला मास्क पहनकर शक्तिशाली प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपना।
तथा 30, 31 मई 2020 को प्रदेश एवं उद्योग आदि स्तर पर श्रमिक सम्मेलन (Convention) करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही बीएमएस महामंत्री केपी सिंह नें कहा कि सतर्कता रखनी होगी जिन मजदूरों/कर्मचारियों के बीच हम आन्दोलन करेंगे वहाँ राष्ट्र विरोधी ताकतें (असामाजिक तत्व, वामपंथी ट्रेड यूनियन, राजनीतिक दल, और CAA, NRC के विरोध में खड़े होने वाले लोग) भी आन्दोलन करने वाले हैं। उनका और हमारा ध्येय, उद्देश्य अलग अलग होंगे। टकराव से बचते हुए अपना आन्दोलन भारतीय मजदूर संघ की रीति-नीति के आधार पर करना है, सिंह नें कहा कि जब-जब मजदूरों / कर्मचारियों पर कुठाराघात हुआ है भारतीय मजदूर संघ सदैव उनके साथ रहा है।





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