हर घर तिरंगा’🇮🇳🇮🇳 से आखिर इतनी भी क्या चिढ़ फारूक अब्दुल्ला को!
By manu Mishra 6July 2022
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अब्दुल्ला ऐसे बिदके जैसे किसी ने कोई नश्तर चुभा दिया हो।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला बुधवार को एक पत्रकार के सवाल पर बिदक गए। सवाल तिरंगा से जुड़ा था। एक पत्रकार ने पूछा कि हर घर तिरंगा पर क्या कहेंगे? अब्दुल्ला ऐसे बिदके जैसे किसी ने कोई नश्तर चुभा दिया हो। ‘अपने घर पर रखो इसे’ कहते हुए अपनी गाड़ी में सवार हो गए। लहजे में तिरंगे के प्रति हिकारत का भाव था। उनका ये वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल भी हो रहा है। अब्दुल्ला के इस हिकारत भरे अंदाज से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का डेढ़ साल पुराना बयान ताजा हो गया है कि ‘विपक्ष मोदी विरोध करते-करते देश का विरोध शुरू कर दिया है…।’ नड्डा ने अक्टूबर 2020 में ये कहकर विपक्ष की ‘दिशाहीनता’ पर तंज कसा था।
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पत्रकार का सवाल शायद ‘हर घर तिरंगा’ अभियान को लेकर था, जिसे मोदी सरकार 15 अगस्त को देशभर में चलाने की योजना बना रही है। तो क्या सिर्फ इसलिए कोई तिरंगे का भी तिरस्कार कर सकता है कि योजना एक ऐसी सरकार की बनाई हुई है जिसे वह पसंद नहीं करता है? दरअसल, स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर देशभर में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है। मोदी सरकार ने 15 अगस्त को ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाने की योजना बनाई है। जम्मू-कश्मीर की ही एक और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने एक बार यहां तक कह दिया था कि अगर आर्टिकल 370 हटाया गया तो जम्मू-कश्मीर में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा। आर्टिकल 370 हटा भी और घाटी में तिरंगा भी शान से लहरा रहा है। हो सकता है कि तिरंगे का नाम सुनते ही बिदके फारूक अब्दुल्ला की खींझ की भी यही वजह हो।
फारूक अब्दुल्ला की गिनती देश के वरिष्ठ नेताओं में होती है। वह 5 बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष उन्हें साझा उम्मीदवार बनाना चाहता था। लेकिन इतने बड़े नेता का राजनीतिक विरोध के नाम पर देश और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान पर उतर आना चौंकाता है। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जब फारूक अब्दुल्ला ने राजनीति के नाम पर राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया है। इससे पहले एक बार वह भारतीय संप्रभुता का ये कहकर अपमान कर चुके हैं कि आर्टिकल 370 के प्रावधानों के हटाए जाने को चीन ने कभी मंजूर नहीं किया है। यह कि वह चीन की मदद से आर्टिकल 370 को बहाल करने की उम्मीद करते हैं।
सरकार का विरोध ठीक है। ठीक क्या, ये तो विपक्ष का कर्तव्य है। लेकिन सरकार का विरोध करते-करते देश का विरोध, राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान कतई जायज नहीं है। कभी सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल, कभी गलवान घाटी को लेकर अपनी ही सेना पर अविश्वास मगर चीनी प्रॉपगैंडे पर विश्वास, आर्टिकल 370 के प्रावधानों को रद्द करने के बाद ‘नेटबंदी’ के बहाने जम्मू-कश्मीर में लोगों पर ‘अत्याचार’ किए जाने के पाकिस्तानी दुष्प्रचार का हिस्सा बनना…विपक्ष कई मौकों पर मोदी विरोध के नाम पर जाने-अनजाने देशविरोध पर उतरता दिखा है। इस तरह की गैरजिम्मेदार और शर्मनाक आचरण से विपक्षी दलों को राजनीतिक नुकसान ही उठाना पड़ेगा। या यूं कहें कि उठाना पड़ ही रहा है।
Farooq Abdullah news: अपने घर में रखो इसे…हर घर तिरंगा अभियान पर यह क्या बोल गए फारूक अब्दुल्ला
बात अगर देश के मुस्लिम नेतृत्व की करें तो फारूक अब्दुल्ला मौजूदा दौर में देश के सबसे कद्दावर मुस्लिम नेता हैं। संयोग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिमों पर डोरे डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। सरकार के स्तर पर हो या फिर पार्टी के स्तर पर। हैदराबाद में हाल में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को ‘मुस्लिम आउटरीच’ का मंत्र दिया। मुस्लिमों में पार्टी की पैंठ बढ़ाने के लिए ‘स्नेह यात्रा’ निकालने की बात कही। बीजेपी का फोकस खासकर पसमांदा मुस्लिमों पर है जो आर्थिक और सामाजिक तौर पर बेहद पिछड़े हैं। मोदी सरकार की योजनाओं का लाभ भी मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात से कहीं ज्यादा मिल रहा है। इसके जरिए बीजेपी खुद की मुस्लिमों में स्वीकार्यता बढ़ाना चाहती है।
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री रहे और अब इस्तीफा दे चुके मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने एक हालिया इंटरव्यू में गर्व से बताया था कि मोदी सरकार मुसलमानों की भलाई के लिए क्या-क्या किया है। यहां तक कि सभी पूर्ववर्ती सरकारों से ज्यादा काम किया। नकवी ने बताया कि देश में मुस्लिमों की आबादी 14.23 प्रतिशत है लेकिन पीएम आवास योजना के तहत जितने भी घर बने हैं, उसमें 31 प्रतिशत हिस्सेदारी मुस्लिमों की है। पीएम किसान सम्मान निधि का 33 प्रतिशत फंड मुस्लिमों को गया है। पीएम मुद्रा योजना के 36 प्रतिशत लाभार्थी मुस्लिम हैं।
राजनीतिक तौर पर मुस्लिमों के लिए ‘अछूत’ रही बीजेपी की इस वर्ग में स्वीकार्यता धीरे-धीरे बढ़ भी रही है। तीन तलाक जैसे मुद्दे पर उसे मुस्लिम महिलाओं का समर्थन भी हासिल हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में ये समर्थन कुछ हद तक वोटों में भी तब्दील होते दिखा। रामपुर और आजमगढ़ के हालिया लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की। हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेता इस जीत के कारणों में पसमांदा मुस्लिमों में बढ़ते प्रभाव को भी गिनाया था। ये बातें बता रही हैं कि कैसे विपक्ष दिशाहीन नजर आ रहा है और बीजेपी धीरे-धीरे अपना राजनीतिक आधार मजबूत करने में लगी है। फारूक अब्दुल्ला जैसे विपक्षी नेता अपने गैरजिम्मेदार बयानों और आचरण से जाने-अनजाने उसी की मदद कर रहे हैं जिसकी मुखालफत की उनकी मंशा है यानी बीजेपी। आखिर ये अपनी गलतियों से कब सबक