Breaking News

अश्वगंधा के असीमित लाभ जरूर पढ़ें

 अश्वगंधा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

परिचय (Introduction)

सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर शुष्क प्रदेशों में असगंध के जंगली या कृषिजन्य पौधे 5,500 फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके जंगली पौधे की अपेक्षा कृषिजन्य पौधे गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होते हैं, परंतु तेल आदि के लिए जगंली पौधे ही उपयोगी होते हैं। यह देश भेद से कई प्रकार की कही गई है, परंतु असली असगंध के पौधे को मसलने पर घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है।

गुण (Property)

यह कफ वातनाशक, बलकारक, रसायन, बाजीकारक, नाड़ी-शक्तिवर्द्धक तथा पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

गंडमाला :

असंगध के नये कोमल पत्तों को समान मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर तथा पीसकर झाड़ी के बेर जितनी गोलियां बना लें। इसे सुबह ही एक गोली बासी पानी के साथ निगल लें और असगंधा के पत्तों को पीसकर गंडमाला पर लेप करें।

हृदय शूल :

  • वात के कारण उत्पन्न हृदय रोग में असगंध का चूर्ण दो ग्राम गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
  • असगंध चूर्ण में बहेड़े का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ लेने से हृदय सम्बंधी वात पीड़ा दूर होती है।

क्षयरोग (टी.बी.) :

  • 2 ग्राम असंगध के चूर्ण को असगंध के ही 20 मिलीलीटर काढ़े के साथ सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है।
  • 2 ग्राम असगंध की जड़ के चूर्ण में 1 ग्राम बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग (टी.बी.) मिटता है।

खांसी :

  • असगंध (अश्वगंधा) की 10 ग्राम जड़ को कूट लें, इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 मिलीलीटर पानी में पकाएं, जब 8वां हिस्सा रह जाये तो इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खांसी या वात जन्य खांसी पर विशेष लाभ होता है।
  • असगंध के पत्तों का काढ़ा 40 मिलीलीटर, बहेडे़ का चूर्ण 20 ग्राम, कत्था का चूर्ण 10 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम, लगभग 3 ग्राम सेंधानमक को मिलाकर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से सभी प्रकार की खांसी दूर होती है। टी.बी. खांसी में भी यह लाभदायक है।

गर्भधारण :

  • अश्वगंधा का चूर्ण 20 ग्राम, पानी 1 लीटर तथा गाय का दूध 250 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर पकाकार जब दूध मात्र शेष रह जाये तब इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम गाय का घी मिलाकर मासिक-धर्म की शुद्धिस्नान के 3 दिन बाद 3 दिन तक सेवन करने से स्त्री अवश्यगर्भ धारण करती है।
  • अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध के साथ या ताजे पानी से 4-6 ग्राम की मात्रा में 1 महीने तक निरंतर सेवन करने से स्त्री गर्भधारण अवश्य करती है।
  • अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से वात रोग दूर होता है तथा स्त्री गर्भधारण करती है।
See also  इन 10 उपायों को अपनाकर आप बढ़ा सकते हैं आंखों की रोशनी -

गर्भपात :

बार-बार गर्भपात होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ इन दोनों का 10-10 मिलीलीटर रस पहले 5 महीने तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होगा और गर्भपात के समय सेवन करने से गर्भ रुक जाता है।

रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर :

अश्वगंधा के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

कृमि रोग (पेट के कीड़े) :

इसके चूर्ण में बराबर मात्रा में गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ 5-10 ग्राम नियमित सेवन करने से लाभ होता है।

संधिवात (जोड़ों का दर्द) में :

  • अश्वगंधा के पंचांग (जड़, पत्ती, तना, फल और फूल) को कूटकर, छानकर 25 से 50 ग्राम तक सेवन करने से जोड़ों का दर्द (गठियावात) दूर होता है। गठिया में अश्वगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्ते, 250 मिलीलीटर पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाये तो छानकर पी लें। 1 सप्ताह पीने से ही गठिया में जकड़ा और तकलीफ से रोता रोगी बिल्कुल अच्छा हो जाता है तथा इसका लेप भी बहुत लाभदायक है।
  • अश्वगंधा के चूर्ण की मात्रा 2 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ खाने से गठिया के रोगी को आराम हो जाता है।
  • अश्वगंधा के तीन ग्राम चूर्ण को तीन ग्राम घी में मिलाकर, एक ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है। अश्वगंधा की 15 ग्राम कोंपले या कोमल पत्ते लेकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालें जब पत्ते गल जाये या नरम हो जायें तो छानकर गर्म-गर्म तीन-चार दिन पीयें, इससे कफ जन्य खांसी भी दूर होती है।

कमर दर्द :

  • अश्वगंधा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गाय के घी या शक्कर के साथ चाटने से कमरदर्द और नींद में लाभ होता है।
  • असगंध और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करें। इससे कमर दर्द से आराम मिलता है।
  • असंगध और सफेद मूसली को पीसकर बराबर मात्रा में बनाया गया चूर्ण 1 चम्मच भर, रोजाना दूध के साथ सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है।
  • 1-1 छोटे चम्मच असगंध का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने और ऊपर से एक गिलास दूध पीने से शरीर की कमजोरी दूर होती है।
See also  गर्मियों में घमौरियों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए इन चीजों का करें इस्तेमाल

नपुंसकता :

  • अश्वगंधा का कपड़े से छना हुआ बारीक चूर्ण और चीनी बराबर मिलाकर रखें, इसको 1 चम्मच गाय के ताजे दूध के साथ सुबह भोजन से 3 घंटे पूर्व सेवन करें। इस चूर्ण को चुटकी-चुटकी भर खाते हैं और ऊपर से दूध पीते रहें। रात के समय इसके बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह घोटकर लगाने से इन्द्रिय की शिथिलता दूर होकर वह कठोर और दृढ़ हो जाती हैं।
  • अश्वगंधा, दालचीनी और कडुवा कूठ बराबर मात्रा में कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सुपारी छोड़करक शेष लिंग पर मलें, इसको मलने के पूर्व और बाद में लिंग को गर्म पानी से धो लें।

कमजोरी :

असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल सर्दीयों में ही इसके सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर होकर नवयौवन प्राप्त होता है।

  • असंगध चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में सेवन करने से कमजोर शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है।
  • अश्वगंधा का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की तरह प्रसन्न रहता है।
  • अश्वगंधा चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द आठ गुने अर्थात 140 ग्राम, इन तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें।
  • अश्वगंधा चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल (कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह ग्राम शाम दूध के साथ खायें।
  • एक ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।

खून की खराबी :

4 ग्राम चोपचीनी और अश्वगंधा का बारीक पिसा चूर्ण बराबर मात्रा में लें। इसे शहद के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्तविकार मिट जाता है

ज्वर :

इसका चूर्ण पांच ग्राम, गिलोय की छाल का चूर्ण चार ग्राम, दोनों को मिलाकर प्रतिदिन शाम को गर्म पानी से खाने से जीर्णवात ज्वर दूर हो जाता है।

सभी प्रकार के रोगों में :

लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग गिलोय का चूर्ण को 5 ग्राम अश्वगंधा के चूर्ण के साथ मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।

See also  कोरोना पॉजीटिव के घर फिर लगेगा पोस्टर, दो लोगों की मौत

बांझपन दूर करना :

  • असगंध, नागकेसर और गोरोचन इन तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छान लेते हैं। इसे शीतल जल के साथ सेवन करें तो गर्भ ठहर जाता है।
  • असगंध तथा नागौरी को 50 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर कपड़छन कर लेते हैं। जब मासिक-धर्म के बाद स्त्री स्नान करके शुद्ध हो जाए तो 10 ग्राम की मात्रा में इसका सेवन करें। उसके बाद पुरुष के साथ रमण (मैथुन) करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी।

गर्भधारण :

  • असगंध के काढे़ में दूध और घी मिलाकर 7 दिनों तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण होता है।
  • असगंध का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ ठहरता है।
  • असगंध 100 ग्राम दरदरा कूटकर इसकी 20 ग्राम मात्रा को 200 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रख देते हैं। सुबह इसे उबालते हैं। एक चौथाई रह जाने पर इसे छानकर 200 मिलीलीटर गुनगुने मीठे दूध में एक चम्मच घी मिलाकर माहवारी के पहले दिन से 5 दिनों तक लगातार प्रयोग करना चाहिए।

दस्त :

असगंध, दालचीनी, नागरमोथा, बाराही फल, धाय के फूल और कुड़ा (कोरैया) की छाल को निकालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से बुखार के दौरान आने वाले दस्त बंद हो जाते हैं और आराम मिलता है।

मासिक-धर्म सम्बंधी विकार :

असगंध 35 ग्राम की मात्रा में कूटकर छान लेते हैं। इसमें 35 ग्राम की मात्रा में चीनी मिला देते हैं। इसकी 10 ग्राम मात्रा को पानी से खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले सेवन करना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

प्रदर :

  • असगंध और शतावर का बराबर मात्रा का चूर्ण 3 ग्राम ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
  • असगंध का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वेत प्रदर मिट जाता है। 25-25 ग्राम की मात्रा में असगंध, बिधारा, लोध्र पठानी, को कूट-पीस छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।
  • 5-10 ग्राम असगंध, नागौरी चूर्ण सुबह-शाम घी के साथ सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।

Facebook
Twitter
LinkedIn

Related Posts

Verified by MonsterInsights