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कुछ मिनट में:अक्षय खन्ना लेकर आए हैं दृश्यम 2 में ट्विस्ट, बेहतरीन डायलॉग, सुपर सस्पेंस, ड्रामा से भरपूर है फिल्म

 कुछ मिनट में:अक्षय खन्ना लेकर आए हैं दृश्यम 2 में ट्विस्ट, बेहतरीन डायलॉग, सुपर सस्पेंस, ड्रामा से भरपूर है फिल्म

इस बर्ष वैसे तो साउथ की बहुत कम फिल्मों की हिंदी रीमेक आला दर्जे की बन पाई हैं। मगर ‘दृश्यम 2’ उस जिंक्स को तोड़ती है। पिछले साल मोहनलाल की दृश्यम 2 अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई थी। इस साल इसकी हिंदी रीमेक अभिषेक पाठक ने बनाई। उन पर जाहिर तौर पर जिम्मेदारी और चुनौती थीं कि वह कैसे दृश्यम फ्रेंचाइजी की गुणवत्ता को मेंटेन रख सकें। इस लिहाज से अभिषेक पाठक उस टेस्ट में पूरी तरह से पास हुए हैं। उन्होंने फिल्म का तेवर और कलेवर बहुत ही सधा हुआ रखा है। उन्हें अपने साथी लेखक आमिल का भी पूरा साथ मिला है।

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साथ ही विजय सालगांवकर, गायतोंडे, मीरा देशमुख, नंदनी, अंजु, अनु जैसे किरदारों ने पिछली फिल्म की तरह यहां भी अपने अंदाजज, जज्बात और सफर से दर्शकों का दिल जीता है। फिल्म में एक नए किरदार आईजी तरुण अहलावत का यहां पदार्पण हुआ है। उसे अक्षय खन्ना ने निभाया है और विजय सालगांवकर को गुनहगार साबित करने में आईजी तरुण कि चालें उन्होंने बड़ी चालाकी से चलाते दिखाई हैं।

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गायतोंडे का अधूरा बदला यहां सिर चढ़कर बोलता है। हालात ऐसे भी बनते हैं, जहां विजय सालगांवकर को अपना गुनाह कबूल करना पड़ता है। उसे कन्फेस करना पड़ता है कि उसी ने मीरा देशमुख के बेटे का कत्ल किया और बॉडी पुलिस स्टेशन के नीचे छुपाई। फिर भी वह कैसे खुद को और अपनी पूरी फैमिली को बचाता है यह इस फिल्म की खूबसूरती है।

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पुलिस सिस्टम के प्रति बेशक राइटर, डायरेक्टर और आम लोगों की जो एक नाराजगी है और जो अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कानून हैं उनके प्रति, उस गुस्से को बहुत अच्छे से भुनाया है। तभी जिन लोगों ने अगर मूल मलयाली फिल्म देखी है, उन्हें भी हिंदी में इसे देखते हुए अच्छा महसूस होता है। जिन लोगों ने अगर मलयाली मूल फिल्म नहीं देखी है, उन्हें सरप्राइज करने की कुव्वत अपने में रखता है।

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इस फिल्म की ताकत इसकी राइटिंग है। कई अच्छे डायलॉग, इसके तकरीबन सभी किरदारों के खाते में गए हैं, खासकर अक्षय खन्ना का एक डायलॉग है, ‘न्याय की जरूरत सबको है, मगर सबसे ज्यादा जरूरत मरे हुए को पड़ती है’। इस डायलॉग में एक बड़ा सटायर भी है जो इस देश और दुनिया के बाकी देश के संदर्भ में है। दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म में दिमागी एक्शन, सस्पेंस और ह्यूमर सब साथ-साथ चलते हैं।

एक और डायलॉग है जो विजय सलगांवकर की पत्नी के रोल में श्रिया सरन बोलती हैं कि ‘डेमोरलाइज का मतलब नोटबंदी’ है, जबकि उनका संदर्भ डिमॉनेटाइजेशन वाली नोट बंदी से था। ठीक इसी तरह एक्स आईजी मीरा देशमुख के खाते में सदा हुआ डायलॉग है, ‘मैंने एक चौथी पास केबल ऑपरेटर को कम आंकने की गलती की थी, पर अब उसने एक मां को कम आंका है।’

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विजय सालगांवकर सेल्फ मेड मैन है जो केबल ऑपरेटर से अब सिनेमा हॉल का मालिक है और बड़े लोगों के बीच उसका उठना बैठना है। उसको भी एक अच्छा डायलॉग मिला, जब वह कहता है, ‘हाथ की लकीरों पर मत जाओ गालिब, किस्मत तो उसकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते।’ कुल मिलाकर यह सभी कलाकारों और क्रू मेंबर के अनुशासित कर्म का नतीजा है। एक बेहतर फिल्म बनी है। दर्शकों को पसंद आती है तो फिर से साउथ की रीमेक में बॉलीवुड के मेकर्स का यकीन गहरा होगा।

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