Explained: कोरोना वैक्सीन के लिए भारत को US से कौन-सा कच्चा माल चाहिए? Newsश्रमवीरभारत

कहा- अमेरिका फर्स्ट
कोरोना के दौर में जब देश दुश्मनी भुलाकर भी मानवीय शत्रु को हराने की कोशिश में हैं, वहीं अमेरिका ने भारत का मित्र देश होने के बाद भी सीधी मदद से इनकार कर दिया था. कच्चे माल की आपूर्ति को लेकर अमेरिका ने पहले अपने नागरिकों को देखने की बात की.
भारत ने की थी अमेरिका की मदद
ये मसला तब आया, जबकि भारत ने तब अमेरिका को मदद दी थी, जब वो महामारी के सबसे बुरे दौर से जूझ रहा था. तब भारत ने उसे भारी मात्रा में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन भेजा था. अब बारी अमेरिका की है कि वो भारत के संकट में उसकी मदद करे. पहले इसमें आनाकानी करते अमेरिका ने हाल ही में इसपर हामी भरी है कि वो भारत की हरसंभव मदद करेगा.

क्या है ये प्रतिबंध
बाइडन ने इसी साल की शुरुआत में यूएस डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट (US Defense Production Act) के तहत तय किया कि कोरोना के टीके के लिए सभी जरूरी चीजों का निर्यात बंद कर दिया जाए. साल 1950 में बना ये एक्ट सबसे पहले कोरियन युद्ध के दौरान बना था ताकि सेना के लिए मेडिकल सप्लाई बनी रहे. धीरे-धीरे इसका विस्तार सेना से होते हुए प्राकृतिक आपदाओं, आतंकी हमलों और दूसरी राष्ट्रीय आपदाओं तक हो गया.
क्या कर सकता है राष्ट्रपति
एक्ट के तहत राष्ट्रपति को ये ताकत मिलती है कि वो किसी खास चीज या कई चीजों को लेकर आयात-निर्यात के नियम तय सके और निजी के अलावा सरकारी उद्योगों को इस बारे में आदेश दे सके. इसके अलावा इस एक्ट के तहत राष्ट्रपति ये आदेश भी दे सकता है कि किसी खास चीज का उत्पादन तेजी से हो ताकि आपदा पर नियंत्रण हो सके.
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साल 2019 के आखिर में कोरोना की शुरुआत के साथ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस एक्ट पर काम किया था. उन्होंने देश में वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाने को कहा. साथ ही मेडिकल सप्लाई को बाहर भेजने में कमी की. उनके बाद सत्ता में आने पर इसी साल की जनवरी में बाइडन ने एक्ट को थोड़ा और विस्तार देते हुए मेडिकल सामग्री का उत्पादन और बढ़ाने को कहा.

वैक्सीन बनाने वाले कारखाने में लगभग 9 हजार अलग-अलग तरह के मटेरियल लगते हैं (Photo- news18 English via Serum Institute of India)
मेडिकल निर्यात में भारी कटौती हुई
इस एक्ट का असर साफ तौर पर आयात पर हुआ और अमेरिकी कंपनियों ने दूसरे देशों को मेडिकल सप्लाई देने में कटौती शुरू कर दी. इंडियन एक्सप्रेस में इस आशय की रिपोर्ट फाइनेंशियल टाइम्स के हवाले से आई है. अब जबकि भारत में तेजी से वैक्सीन उत्पादन की जरूरत है, इस अमेरिकी एक्ट का असर कच्चे माल की कमी के तौर पर दिख रहा है. यही कारण है कि भारत कच्चे माल के लिए अमेरिकी मदद चाहता है.
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क्या है वैक्सीन के लिए कच्चा माल
वैक्सीन बनाने वाले कारखाने में लगभग 9 हजार अलग-अलग तरह के मटेरियल लगते हैं. ये रिपोर्ट वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (World Trade Organization) में आ चुकी है. ये उत्पाद 30 अलग-अलग देशों के 300 सप्लायर्स से मिलते हैं. ऐसा केवल भारत के साथ नहीं, बल्कि वैक्सीन निर्माण करने वाले लगभग सभी देश के साथ है.
कई दूसरी चीजें भी शामिल
कच्चे माल के तहत उपकरणों के अलावा mRNA, असक्रिय वायरल वैक्टर, प्रोटीन सबयूनिट जैसी कई चीजें शामिल हैं. इनके अलावा प्लास्टिक बैग, फिल्टर और सेल-कल्चर मीडिया जैसी चीजों की जरूरत कोरोना की वैक्सीन के निर्माण में पड़ती हैं. अब अमेरिका के इन चीजों के निर्यात पर एक्ट लगाने के कारण भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सिन जैसी कोरोना वैक्सीन के उत्पादन पर असर हो सकता है.
वैक्सीन बनाने के दौरान काम आने वाली कई चीजों का सबसे बड़ा उत्पादक अमेरिका ही है- सांकेतिक फोटो
अमेरिका के एक्ट का असर भारत में
मार्च में ही भारत बायोटेक के चेयरमैन डॉ कृष्णा एल्ला ने कोवैक्सीन के संदर्भ में कहा था कि अमेरिकी प्रतिबंध के चलते वैक्सीन उत्पादकों की क्षमता पर असर हो रहा है. हालांकि उन्होंने ये नहीं कहा था कि कौन सा कच्चा माल कम पड़ रहा है और क्या इसका असर कोवैक्सीन पर भी हो रहा है.
तो क्या अमेरिका ही कच्चे माल का अकेला उत्पादक है
नहीं. अमेरिका के अलावा यूरोप के कई देश भी इसके उत्पादक हैं लेकिन वैक्सीन बनाने के दौरान काम आने वाली कई चीजों, जैसे प्लास्टिक और कई तरह के प्रतिक्रियाशील द्रव्य का सबसे बड़ा उत्पादक अमेरिका ही है. इसके अलावा प्रोटीन को शुद्ध करने के लिए जो फिल्टर चाहिए, वो भी अमेरिका बनाता है.
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क्या दूसरे देशों से उत्पाद नहीं लिया जा सकता?
वैसे तो जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस, स्विटजरलैंड और इटली जैसे देशों में वैक्सीन के लिए लगने वाला कच्चा माल बनता है लेकिन इतनी मात्रा में नहीं कि उनके लेकर भारत का काम चल जाए. वैसे भारत ने इन देशों के निर्माताओं से संपर्क किया भी है लेकिन महामारी के कारण पहले से ही बढ़ी मांग के चलते ये कंपनियां बुरी तरह से व्यस्त हैं और ज्यादा डिमांग पूरी कर पाने की स्थिति में नहीं.