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अमरनाथ की अमरकथा का रहस्य

 

अमरनाथ की

अमरनाथ की अमरकथा का रहस्य

केदारनाथ से आगे है अमरनाथ और उसके आगे है कैलाश पर्वत। कैलाश पर्वत शिवजी का मेनह समाधिस्थ होने का स्थान है तो केदारनाथ विश्राम भवन। हिमालय का कण-कण शिव-शंकर का स्थान है। बाबा अमरनाथ को आजकल स्थानीय मुस्लिम लोगों के प्रभाव के कारण ‘बर्फानी बाबा’ कहा जाता है, जो कि अनुचित है। उन्हें बर्फानी बाबा इसलिए कहा जाता है कि उनके स्थान पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है। 

शिवलिंग का निर्मित होना समझना में आता है, लेकिन इस पवित्र गुफा में हिम शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी प्राकृतिक से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। यहां माता-पिता सती के कंठ का निपात हुआ था। पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता के अंग और अंगभूषण की पूजा होती है। ऐसे बहुत से तीर्थ हैं, जहां प्राचीनकाल में सिर्फ साधु-संत ही जाते थे और वहां जाकर वे तपस्या करते थे। लेकिन आजकल यात्रा सुविधाओं में सुगम होने के कारण व्यक्ति कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी जाने लगा है। ये वे स्था न हैं, जो हिन्दुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं 

अमरकथा:
इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वज्ञान को ‘अमरकथा’ के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम ‘अमरनाथ’ पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती और भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जैसे कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था। 

अमरनाथ कथा:  
सती ने दूसरा जन्म हिमालयराज के यहाँ पार्वती के रूप में लिया। पहले जन्म में वे दक्ष की पुत्री थे और दूसरे जन्म में वे दुर्गा बनीं। एक बार पार्वतीजी से ने शंकरजी से पूछा, ‘मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य है कि आपके गले में नरमुंड माला क्यों है?’ भगवान शंकर ने बताया, ‘पार्वती! बहुत बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं। पार्वती बोली, ‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, लेकिन आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें। मैं भी अजर-अमर होना चाहता हूँ? ‘
भगवान शंकर ने कहा, ‘यह सब अमरकथा के कारण है।’
यह सुनकर पार्वतीजी ने शिवजी से कथा सुनाने का अनुरोध किया। बहुत वर्षों तक भगवान शंकर ने इसे टालने का प्रयास किया, लेकिन जब पार्वती की जिज्ञासा बढ़ी तो उन्होंने लगा दिया कि अब कथा सुनी जानी चाहिए। अब सवाल यह था कि अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने इसीलिए भगवान शंकर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए और अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे। । अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए वे सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्यग किया। तत्पश्चात चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेशजी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया। फिर पंचतरणी पहुंचकर शिवजी ने पाँचों तत्वों का परित्याग किया। सबकुछ को छोड़कर अंत में भगवान शिव ने इस अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।

शुकदेव:  
जब भगवान शंकर इस अमृतज्ञान को भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक शुक (हरा कठफोड़वा या हरि कंठी वाला तोता) का बच्चा भी यह ज्ञान सुन रहा था। पार्वती कथा सुनने के बीच-बीच में हुंकारा भरती थी। पार्वतीजी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर बैठे एक शुक ने हुँकारी भरना शुरू कर दिया।
जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वे शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ गए। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा। भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 साल तक इश के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर उन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर आपके ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तो ये इशारा से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए। इश में ही वे वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पवित्र युगल कबूतर: श्री अमरनाथ की यात्रा के साथ ही कबूतरों की कथा भी जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे। महादेव ने उन्हें श्राप दे दिया कि आप दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहें। तुपुरांत वे रुद्रुपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया। माना जाता है कि ich यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में उसी के अनुसार कबूतरों के भी दर्शन होते हैं। यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते हैं? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।
पार्वतीजी भगवान सदाशिव से कहती हैं- ‘प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा सुनना चाहता हूँ। मैं यह भी जानना चाहता हूं कि महादेव गुफा में स्थित अमरेश क्यों और कैसे कहलाए? ‘ सदाशिव भोलेनाथ बोले, ‘देव! आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, स्थावर (पर्वतादि) जंगल, (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, लेकिन इंदादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे। ‘
इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मृत्यु से भयभीत देवता उनके पास आए हैं। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि ‘हमें मृत्यु बाधा है। आप ऐसा कोई उपाय नहीं कर सकते जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे। ‘ ‘मैं आप लोगों की मौत के डर से रक्षा करूंगा’, कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतारकर निचोरा और देवगणों से बोले, ‘यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है।’ 
उस चंद्रकला के निचोडऩे से पवित्र मकर की धारा बह निकली और उसी धारा के बाद अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े। पावनवे में जो भस्म है, वे इसी अमृत बिंदु के कण हैं, जो पृथ्वी पर गिरे थे। सदाशिव भगवान भगवान पर प्रेम न्योछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए। देवगण सदाशिव को जलरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारंबार नमस्कार करने लगे।
भोलेनाथ ने देवताओं से कहा, ‘हे देवताओं! तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।’ देवताओं को ऐसा वर देकर सदाशिव उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव ने अमृत रूप सोमकला को धारण कर देवताओं की मृत्यु का नाश किया, तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ।


 अमरकथा का रहस्य

केदारनाथ से आगे है अमरनाथ और उसके आगे है कैलाश पर्वत। कैलाश पर्वत शिवजी का मेनह समाधिस्थ होने का स्थान है तो केदारनाथ विश्राम भवन। हिमालय का कण-कण शिव-शंकर का स्थान है। बाबा अमरनाथ को आजकल स्थानीय मुस्लिम लोगों के प्रभाव के कारण ‘बर्फानी बाबा’ कहा जाता है, जो कि अनुचित है। उन्हें बर्फानी बाबा इसलिए कहा जाता है कि उनके स्थान पर प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग निर्मित होता है। 

शिवलिंग का निर्मित होना समझना में आता है, लेकिन इस पवित्र गुफा में हिम शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी प्राकृतिक से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है। पार्वती पीठ ही शक्तिपीठ स्थल है। यहां माता-पिता सती के कंठ का निपात हुआ था। पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता के अंग और अंगभूषण की पूजा होती है। ऐसे बहुत से तीर्थ हैं, जहां प्राचीनकाल में सिर्फ साधु-संत ही जाते थे और वहां जाकर वे तपस्या करते थे। लेकिन आजकल यात्रा सुविधाओं में सुगम होने के कारण व्यक्ति कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी जाने लगा है। ये वे स्था न हैं, जो हिन्दुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं

अमरकथा:
इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने भगवती पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इस तत्वज्ञान को ‘अमरकथा’ के नाम से जाना जाता है इसीलिए इस स्थान का नाम ‘अमरनाथ’ पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती और भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। यह उसी तरह है जैसे कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद हुआ था।

अमरनाथ कथा:  
सती ने दूसरा जन्म हिमालयराज के यहाँ पार्वती के रूप में लिया। पहले जन्म में वे दक्ष की पुत्री थे और दूसरे जन्म में वे दुर्गा बनीं। एक बार पार्वतीजी से ने शंकरजी से पूछा, ‘मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य है कि आपके गले में नरमुंड माला क्यों है?’ भगवान शंकर ने बताया, ‘पार्वती! बहुत बार तुम्हारा जन्म हुआ है उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं। पार्वती बोली, ‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, लेकिन आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें। मैं भी अजर-अमर होना चाहता हूँ? ‘
भगवान शंकर ने कहा, ‘यह सब अमरकथा के कारण है।’
यह सुनकर पार्वतीजी ने शिवजी से कथा सुनाने का अनुरोध किया। बहुत वर्षों तक भगवान शंकर ने इसे टालने का प्रयास किया, लेकिन जब पार्वती की जिज्ञासा बढ़ी तो उन्होंने लगा दिया कि अब कथा सुनी जानी चाहिए। अब सवाल यह था कि अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने इसीलिए भगवान शंकर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए और अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे। । अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए वे सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्यग किया। तत्पश्चात चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेशजी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया। फिर पंचतरणी पहुंचकर शिवजी ने पाँचों तत्वों का परित्याग किया। सबकुछ को छोड़कर अंत में भगवान शिव ने इस अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।

शुकदेव:  
जब भगवान शंकर इस अमृतज्ञान को भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक शुक (हरा कठफोड़वा या हरि कंठी वाला तोता) का बच्चा भी यह ज्ञान सुन रहा था। पार्वती कथा सुनने के बीच-बीच में हुंकारा भरती थी। पार्वतीजी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर बैठे एक शुक ने हुँकारी भरना शुरू कर दिया।
जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वे शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ गए। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा। भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 साल तक इश के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर उन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर आपके ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तो ये इशारा से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए। इश में ही वे वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पवित्र युगल कबूतर: श्री अमरनाथ की यात्रा के साथ ही कबूतरों की कथा भी जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार एक समय महादेव संध्या के समय नृत्य कर रहे थे कि भगवान शिव के गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरु-कुरु’ शब्द करने लगे। महादेव ने उन्हें श्राप दे दिया कि आप दीर्घकाल तक यह शब्द ‘कुरु-कुरु’ करते रहें। तुपुरांत वे रुद्रुपी गण उसी समय कबूतर हो गए और वहीं उनका स्थायी निवास हो गया। माना जाता है कि ich यात्रा के दौरान पावन अमरनाथ गुफा में उसी के अनुसार कबूतरों के भी दर्शन होते हैं। यह आश्चर्य ही है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते हैं? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है। वहाँ ये कबूतर किस तरह रहेंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।
पार्वतीजी भगवान सदाशिव से कहती हैं- ‘प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा सुनना चाहता हूँ। मैं यह भी जानना चाहता हूं कि महादेव गुफा में स्थित अमरेश क्यों और कैसे कहलाए? ‘ सदाशिव भोलेनाथ बोले, ‘देव! आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, स्थावर (पर्वतादि) जंगल, (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, लेकिन इंदादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे। ‘
इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मृत्यु से भयभीत देवता उनके पास आए हैं। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि ‘हमें मृत्यु बाधा है। आप ऐसा कोई उपाय नहीं कर सकते जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे। ‘ ‘मैं आप लोगों की मौत के डर से रक्षा करूंगा’, कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतारकर निचोरा और देवगणों से बोले, ‘यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है।’
उस चंद्रकला के निचोडऩे से पवित्र मकर की धारा बह निकली और उसी धारा के बाद अमरावती नदी के नाम से विख्यात हुई। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर पर जो अमृत बिंदु गिरे वे सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े। पावनवे में जो भस्म है, वे इसी अमृत बिंदु के कण हैं, जो पृथ्वी पर गिरे थे। सदाशिव भगवान भगवान पर प्रेम न्योछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए। देवगण सदाशिव को जलरूप देखकर उनकी स्तुति में लीन हो गए और बारंबार नमस्कार करने लगे।
भोलेनाथ ने देवताओं से कहा, ‘हे देवताओं! तुमने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।’ देवताओं को ऐसा वर देकर सदाशिव उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव ने अमृत रूप सोमकला को धारण कर देवताओं की मृत्यु का नाश किया, तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ।


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